Saturday, September 5, 2020

5 सितम्बर


यह तस्वीर उस वर्ष की है जिस वर्ष मैं नवीं कक्षा में दूसरे प्रयास में सफल हुआ था। 


पहली बार गणित और अंग्रेज़ी में कच्चा रह गया था। यदि मैं असफल न होता तो कक्षा में सवाल पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। 


असफल होने पर घर पर कोई हंगामा नहीं हुआ। मुझे कोई भाषण नहीं दिए गए। कोई सांत्वना भी नहीं दी गई। क्योंकि मैं रोया भी नहीं। निराश भी नहीं हुआ। कोई सपना भी नहीं था, जो टूटा।


असफल होना ऐसा था जैसे बस छूट गई। दूसरी मिल जाएगी। 


जब मुझे पता चला कि दूसरे साल भी वही पढ़ना है, जो पिछले साल पढ़ना था। वैसे ही प्रश्न आएँगे जो पिछले साल आए थे। तब मैं जागा। कि धिक्कार है मुझ पर जो मैं इस साल भी असफल रहा। 


मुझमें हिम्मत आ गई साफ़ लफ़्ज़ों में और बुलंद आवाज़ में कहने की कि मुझे फ़लाँ बात समझ में नहीं आई। मुझे समझाइए। 


वे दिन अच्छे थे कि शिक्षक कक्षा में ही शंका समाधान कर देते थे। ट्यूशन का ज़माना नहीं था। आज भी शायद अच्छे दिन हैं। गुगल, यूट्यूब,और खान एकेडमी जैसी सुविधाएँ सहज उपलब्ध हैं, जहाँ हर शंका का त्वरित निवारण हो जाता है। बीच का दौर ख़राब सा रहा। 


हक़ सर गणित पढ़ाते थे। उन्होंने धेर्यपूर्वक मेरे सारे प्रश्नों के उत्तर दिए। मुझमें गणित के प्रति प्रेम उनके व्यवहार से ही पनपा। 


चन्द्रा मैडम इस तस्वीर में नहीं हैं। उन्होंने मुझे प्रेरित किया कि मैं अंग्रेज़ी में कुछ न कुछ लिखता रहूँ। धीरे-धीरे मेरी कमजोरी दूर हो जाएगी। ऐसा ही हुआ। मुझे हिन्दी फ़िल्मे देखने का बहुत शौक था। मैं उनकी कहानियाँ अंग्रेज़ी में लिखने लगा। व्याकरण और शब्दावली, दोनों में सुधार हुआ। 


शास्त्री जी, धोती पहने प्रिंसिपल सर के पास बैठे हैं। उनका व्यक्तित्व अत्यंत गरिमामय था। आवाज़ भी दमदार थी। वे एक से बढ़कर एक श्लोक सुनाते थे, एवं समझाते थे। वे सब मेरी प्रेरणा बने। उनसे ही मेरा जीवन रोशन हुआ। 


उस कम उम्र में भी मेरी उनसे ईश्वर के अस्तित्व पर बहस हुई थी। मेरे पास उनके तर्क का तब जवाब नहीं था। अब है। 


उनके तर्क को मैंने 2007 में लिखी जन्म कविता में प्रस्तुत किया। 


उनका पढ़ाया श्लोक आज भी मेरी रग-रग में है। 


विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।

पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।।


विद्या विनय अर्थात विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से मनुष्य योग्यता प्राप्त करता है। अपनी योग्यता के दम पर मनुष्य धन प्राप्त करता है। और धन से धार्मिक कार्य समपन्न हो सकते हैं। धार्मिक कार्य से असीम आनन्द की प्राप्ति होती है। 


राहुल उपाध्याय । 5 सितम्बर 2020 । सिएटल


https://mere--words.blogspot.com/2012/11/blog-post_26.html?m=1




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Best Regards,
Rahul
425-445-0827

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