Sunday, September 27, 2020

पेड़ से फल तोड़ना

ननिहाल में घर में जामुन का पेड़ था। दासाब (नाना) ही अक्सर जामुन तोड़ते थे और हम पन्द्रह सदस्य पाँति करके आनन्द से खाते थे। 


तब से पेड़ से तोड़ कर फल खाने का लोभ मैं छोड़ नहीं पाता हूँ।


आज भी यही हुआ। रविवारीय सामूहिक प्रात: भ्रमण के दौरान एक सेब का पेड़ नज़र आ गया। मैंने एक तोड़ा तो तीन और साथ आ गए। सहचर ने एपल से एपल की फ़ोटो ली तो मेरी हँसी छूट गई। 


सिएटल बहुत हरा-भरा है। चारों ओर हरियाली, पेड़ और झीलें। बरसात छिटपुट-छिटपुट तक़रीबन रोज़ ही होती रहती है। इसलिए यह शहर बदनाम भी है। धूप भी रोज़ निकलती है। लेकिन उसका चर्चा नहीं होता। 


कहीं भी कोई फलदार पेड़ नहीं। है तो किसी के घर में या बाग में। यह जानबूझकर किया गया ताकि साफ़-सफ़ाई की ज़हमत न उठानी पड़े। 


यह पेड़ किसी के घर का था पर सड़क के क़रीब। कोई जाली या बाड़ भी नहीं थी। सो तोड़ लिया। वैसे भी वे गिर कर सड़ रहे थे। 


1998 में जब कैलिफ़ोर्निया राज्य में अपना पहला घर ख़रीदा था, तब सेब, संतरे के पेड़ और अंगूर की बेल लगाई थी। 2004 में सिएटल आया। यह वाशिंगटन राज्य में है। यहाँ के सेब बहुत प्रसिद्ध हैं। जैसे कि नागपुर के संतरे। या इलाहाबाद के अमरूद। 


यहाँ कोई फलदार पेड़ नहीं लगाए। चूँकि कैलिफ़ोर्निया में भुगत चुके थे कि जब फल आते हैं तो थोक में आते हैं। न खाते बने, न कोई लेने को तैयार। मन्दिर में दान दिए जा सकते हैं। लेकिन वहाँ भी घर की मुर्ग़ी दाल बराबर। जो रंग, रूप, आकार, चमक बाज़ार के सेब में है वो घर के खाद-रहित फलों में कहाँ। 


राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2020 । सिएटल 






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