87 वर्षीय रूथ बेडर गिन्सबर्ग आज चल बसीं।
वे अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायाधीशों में से एक थीं।
सारे न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। सीनेट द्वारा सार्वजनिक साक्षात्कार में सफल होने पर उनकी नियुक्ति आजीवन काल के लिए हो जाती है।
संविधान कहता है कि हम सब बराबर है। धर्म, जाति, लिंग, चमड़ी का रंग या वंशज का कोई भेदभाव मान्य नहीं है। क़ाबिलियत पर ही सारा दारोमदार है।
होता इसका उल्टा ही है। राष्ट्रपति की जो विचारधारा है, वह उसी विचारधारा वाले व्यक्ति को मनोनीत करता है। पूरा देश भलीभाँति जानता है, और मानता है कि ऐसा होता है, और इसमें कोई बुराई नहीं है। बल्कि अपेक्षित है।
जैसे कि आप कम्पनी के मालिक हैं। आप चाहते हैं कि आपका यह सामान इस प्रकार बने, इस प्रकार बिके, इस बाज़ार में बिके, इतने दाम में बिके। तो ज़ाहिर है आपका उद्देश्य तभी सफल होगा जब आपके सी-ई-ओ की विचारधारा आपसे मिलती जुलती हो। यह हाँ में हाँ मिलाने वाली बात नहीं है। बल्कि विचारधारा की बात है।
सी-ई-ओ भी अपनी विचारधारा के सहायक खोजता है। और यह सब खुले आम होता है। किसी को भी भेदभाव का दोषी नहीं ठहराया जाता है।
जब छोटी-मोटी नौकरी की बात आती है, तब संविधान को सही मायने में ध्यान में रखा जाता है। यहाँ क़ाबिलियत देखकर काम मिल जाता है। विचारधारा से कोई मुसीबत नहीं।
लेकिन यहाँ इंसान स्वयं अपने दायरे सीमित कर लेता है। डॉक्टर का बेटा डॉक्टर। इंजीनियर का बेटा इंजीनियर। माली का बेटा माली। ड्राइवर का बेटा ड्राइवर। नेता का बेटा नेता।
ज़्यादातर न्यायाधीश जब तक जीवित रहते हैं, बने रहते हैं। इसीलिए इनकी नियुक्ति को लेकर कई बखेड़े होते हैं। ख़ासकर जब चुनाव सामने हो।
अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हर चार साल होता है। उसमें पिछले दो सौ साल से कोई फेरबदल नहीं हुआ है। कभी सरकार गिरती नहीं है। राष्ट्रपति मर जाए तो भी नहीं। मरणोपरांत कौन राष्ट्रपति बनेगा उसकी एक लम्बी सूची है।
यह वर्ष चुनाव का है। नवम्बर में चुनाव होंगे। उससे पहले ट्रम्प द्वारा मनोनीत की नियुक्ति हो जाए तो न्यायाधीशों का संतुलन बदल जाएगा। चूँकि रूथ विपरीत विचारधारा की थीं।
चुनाव के बाद यदि बाइडेन जीते तो वहीं संतुलन रहेगा।
रूथ अपनी विचारधारा के प्रति कटिबद्ध थीं। नारी होने के कारण भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान था।
वे कर्मठ भी थीं। कई बार अस्वस्थ रहीं। लेकिन सेवानिवृत्त होने से हमेशा इंकार किया। उम्र भी हो चली थी। लेकिन लगी रहीं।
उन्होंने लीक पर चलना ज़रूरी नहीं समझा। चाहे सब एकजुट हो किसी एक पक्ष में, उन्होंने अपनी बात हमेशा रखी। समझौते नहीं किए।
उनके सम्मान में राजधानी वाशिंगटन डीसी में व्हाइट हाउस, सुप्रीम कोर्ट और केपिटल पर झंडे झुके हुए हैं।
राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2020 । सिएटल
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