Wednesday, September 16, 2020

बिल गेट्स के पिता

आज बिल गेट्स के पिता नहीं रहें। 


मेरी उनसे बाक़ायदा मुलाक़ात तो कभी नहीं हुई। लेकिन एक बार मैंने उन्हें अपनी पत्नी के साथ अपनी कार ढूँढते हुए पाया। बेलव्यू में सिनेमार्क्स थियेटर के नीचे पाँच मंज़िला पार्किंग लॉट है। उसमें चौथी मंज़िल पर मैं अपनी गाड़ी पार्क करता हूँ। महीने में एक-दो बार तो जाना हो ही जाता है। हर नई हिन्दी फ़िल्म को अभी भी बच्चों की तरह उत्साह से देखता हूँ। 


उसी बिल्डिंग में माईक्रोसॉफ्ट का दफ़्तर है। मेरे पाठकों में इतनी विविधता है कि कइयों को यह भी नहीं पता कि माइक्रोसॉफ़्ट किस चिड़िया का नाम है। बिल गेट्स की तो जाने ही दें। 


और यह इसलिए नहीं कि यह विदेशी बात है। कइयों को यह भी नहीं पता कि हमारे भारत रत्न, सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर कौन हैं। 


यह सब अज्ञानतावश नहीं है। उन्होंने इसकी ज़रूरत ही नहीं समझी। अख़बार पढ़ना नौ से पाँच की नौकरी वालों का शग़ल है। दुकानदार और किसान दोनों अपने काम से काम रखते हैं। 


दुकानदार साबुन-मंजन-तेल सब बेचता है। उन पर लगे बत्तीसी फाड़ते कलाकारों की तस्वीरों से उन्हें कोई लेना देना नहीं। ग्राहक लट्टू होना चाहिए, ताकि सामान बिके। दुकानदार को इससे कोई मतलब नहीं। 


और जो माइक्रोसॉफ़्ट से वाक़िफ़ हैं, वे सिएटल से अनभिज्ञ हैं। सिएटल अमेरिका का महानगर है। लेकिन सौभाग्य से यह अभी भी न्यू यॉर्क या लॉस ऐंजेलेस जितना विख्यात एवं कुख्यात नहीं है। 


माइक्रोसॉफ़्ट, अमेज़ॉन, बोईंग - ये तीनों कम्पनियाँ सिएटल की हैं। 


माइक्रोसॉफ़्ट के दफ़्तर करीब चालीस-पचास बिल्डिंग में हैं। इतने कि गणना भी ज्ञात नहीं। 


मेरा दफ़्तर उस बिल्डिंग में नहीं था। मैं किसी और काम से वहाँ गया था। उस दिन कोई फ़िल्म भी नहीं देखी थी। वहाँ बड़ा सा मॉल भी है। एपल का स्टोर भी है। 


उस शाम किसी भारतीय संगठन ने नीलामी रखी थी चंदा इकट्ठा करने के लिए। ऐसे कार्यक्रमों में प्रायः धनाढ्य लोग ज़ाया करते हैं। मुझे भी निमंत्रण आया था। मैं ऐसे कार्यक्रमों में सम्मिलित नहीं होता हूँ। 


निमंत्रण में बिल गेट्स के पिता का विशेष उल्लेख था। जब मैंने उन्हें पार्किंग लॉट में भटकते देखा तो अचम्भा हुआ। फिर दो और दो चार किए, और समझ गया कि कार्यक्रम समाप्त होने वाला है, ये थोड़ा जल्दी निकल आए हैं और अपनी कार तलाश रहे हैं। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। ये क़द के काफ़ी लम्बे थे। पत्नी साधारण क़द-काठी की। 


मैं क्या मदद करता? मुझे क्या मालूम उनकी कार कैसी दिखती है। 


नीलामी वहीं पर स्थित एक आलीशान होटल के एक महान सभागार में हुई थी। उस होटल का भी यही पार्किंग लॉट था। कुछ लोग वेले सर्विस का लाभ उठा लेते हैं। ख़र्चा ज़्यादा होता है, लेकिन गाड़ी से आप होटल के दरवाज़े पर ही उतर जाए, और चाबी कर्मचारी को पकड़ा दें। वो कहाँ पार्क करे, वह उसकी ज़िम्मेदारी। आप जब वापस लौटना चाहें, उन्हें कहें, गाड़ी दरवाज़े पर मिलेगी। और वह कर्मचारी गाड़ी का दरवाज़ा भी खोल देगा ताकि आपको यह कष्ट भी न उठाना पड़े। 


बिल गेट्स के पिता ने समृद्ध एवं सम्पन्न होते हुए भी अपनी गाड़ी ख़ुद पार्क की, लिफ़्ट लेकर सभागार पहुँचे। और वापस भी अपने आप। और यह भी नहीं कि साथ में दो-चार चेले-चपाटे चल रहे हों। या कार्यक्रम के आयोजक जी-साब, जी-साब करते हुए उन्हें छोड़ने आए हों। बिलकुल एक आम नागरिक की तरह। उस पार्किंग लॉट में, उनमें और मुझमें कोई फ़र्क़ नहीं था। 


राहुल उपाध्याय । 15 सितम्बर 2020 । सिएटल 


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