अमेरिका कर्मप्रधान देश है। हर इंसान यहाँ कार्यरत है।
साल में दो हज़ार घंटे काम करते हैं। 40 घंटा प्रति सप्ताह। 8 घंटे रोज़। (सुबह 8 से 12, और दोपहर 1 से 5, 12 से 1 के बीच लंच)। हफ़्ते में पाँच दिन। सोम से शुक्र। शनि, रवि - छुट्टी। साल में पचास हफ़्ते, यही क्रम चलता है।
सफ़ेद कॉलर कर्मचारियों को साल में दो हफ़्ते या 80 घंटे की छुट्टी मिलती है। वो चाहे इसे जैसे ले। एक साथ। या टुकड़ों में।
साथ ही मिलती है दस दिन की अन्य छुट्टियाँ:
ये तीन तिथि से तय हैं: 1 जनवरी, 4 जुलाई (स्वतंत्रता दिवस), 25 दिसम्बर।
धन्यवाद ज्ञापन की छुट्टी नवम्बर के चौथे गुरूवार को होती है। उसके अगले दिन भी छुट्टी होती है। उसके बारे में मैंने यहाँ लिखा है:
https://rahul-upadhyaya.blogspot.com/2020/10/3.html?m=1
बाक़ी छुट्टियाँ सोमवार को होती हैं, ताकि शनि/रवि के चक्कर में न फँसे और तीन दिवस का अवकाश भी एक साथ मिल जाए। जिसे यहाँ लाँग वीकेंड कहा जाता है और बड़ी बेसब्री से किया जाता है। बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाई जाती है कि कहाँ कैसे क्या करेंगे।
उनमें से साल का पहला लाँग वीकेंड आज वाला वीकेंड है। इसे मेमोरियल डे वीकेंड कहते हैं। आज के दिन शहीदों को याद किया जाता है।
लेकिन जैसा कि होता है छुट्टियाँ होती है किसी और मक़सद से लेकिन हर कोई अपने हिसाब से लाभ उठाता है।
इन दिनों मेरे लिए सारे दिन एक से हैं। कोविड न होता तो भी। मम्मी को जो आराम घर पर है वो और कहीं सम्भव नहीं हो पाता है। इसलिए जब से आई हैं, कहीं नहीं गई।
छ: साल पहले, 23 मई 2015 को हम क्रेटर लेक गए थे। यह हमारे घर से 400 मील (650 किलोमीटर) दूर है। यानी दिल्ली से जम्मू तक। अपनी कार से आठ घंटे में पहुँच गए। भारत में यहीं दूरी तय करने में 13 घंटे लगते।
वहाँ दो रात रूके। शनि को गए, सोम को वापस घर आ गए।
बहुत अच्छा लगा। इतना नीला पानी और कहीं नहीं देखा। कुछ समय पहले बर्फ़ गिरी थी जो यदा-कदा दिख जाती थी। वरना मौसम बहुत सुहाना था। बर्फ़ के फ़र्श पर टी-शर्ट पहन कर चलने का अपना ही आनन्द है।
यह झील इतनी विशाल और खूबसूरत है कि इसे देखे बिना समझा नहीं जा सकता है।
7,700 साल पहले इसका गठन एक हिंसक विस्फोट से हुआ जिससे एक ऊंची चोटी ढह गई। वैज्ञानिक इसकी शुद्धता पर चकित हैं: बारिश और बर्फ से पोषित, यह अमेरिका की सबसे गहरी झील है। 655 मीटर।
इस झील में सिर्फ़ आसमान से पानी आता है और आसमान को ही जाता है। और कोई निकास का रास्ता नहीं है।
राहुल उपाध्याय । 31 मई 2021 । सिएटल
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