Wednesday, May 5, 2021

5/5/55

5/5/55. मम्मी-बाऊजी का विवाह इसी दिन सम्पन्न हुआ था। 


दोनों शादी से पहले मिले नहीं थे। बात भी नहीं की थी। फ़ोटो भी नहीं देखा था। 


सारी बातचीत परिवारों के बड़े लोगों ने की थी। दोनों की उम्र भी कम थी। बाऊजी 19 के और मम्मी 16 की। बाऊजी पास ही के गाँव में पढ़ाते थे। मम्मी चौथी तक ही पढ़ पाईं। दासाब (नाना) नहीं चाहते थे कि मम्मी घर से बाहर जाए। इसलिए स्कूल बन्द। 


दासाब गाँधी जी के आदर्शो पर चलने वाले इन्सान थे। सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया। जेल भी गए। आजीवन गाँधी टोपी व खादी पहनी। 


लेकिन शायद पूर्णत: गाँधी जी को आत्मसात नहीं कर पाए। मम्मी तीन बहनों में सबसे बड़ी थीं। बाक़ी दोनों बहनों का भी यही हाल हुआ। पढ़ नहीं पाईं। 


चौथी बहन का जन्म मम्मी के विवाह के आसपास हुआ। उनका अनुभव अलग रहा। तब तक मामासाब बड़े हो चुके थे, सो दासाब से बात कर सकते थे। एवं समय भी बदल चुका था। इन्दिरा गाँधी प्रधानमन्त्री बन चुकी थीं। सो सबसे छोटी मौसी एम-ए, बी-एड कर सकीं। स्कूल में अध्यापिका की नौकरी की। 


5/5/55 को दो और शादियाँ हुईं। मामासाब-मामीसाब की, एवं बुआजी-फूफाजी की। अद्भुत संयोग। यह कैसे सम्भव हुआ? विवाह की तिथि वर-वधू की जन्मपत्रियों को मिलाकर तय की जाती हैं। कैसे तीन जोड़ों की तिथियाँ एक ही दिन तय हो गईं? यह संयोग था कि बहुत ही सुन्दर योजना?


रंगीन फ़ोटो 5/5/2005 का है। शादी की पचासवीं वर्षगाँठ। बाई ओर बाऊजी-मम्मी। दाईं ओर मामासाब-मामीसाब। मैं तब सोमवार से शुक्रवार माइक्रोसॉफ़्ट के लिए सिएटल में काम करता था। शनिवार और रविवार सेन फ्राँसिस्को चला जाता था - मंजू, प्रेरक और बच्चों के पास। प्रेरक 8 का था, अबोश तीन का, और सबवे दुकान दो साल की। मेरे जाने से मंजू को राहत मिल जाती थी। इस कारण पचासवीं वर्षगाँठ में शामिल न हो सका। 


सब समय का फेर है। बनारस से कलकत्ता सत्र ख़त्म होने पर ही गया। बीच में कभी नहीं। अमेरिका से पहली बार भारत पाँच साल बाद गया। पाँच साल तक सिर्फ़ फ़ोटो देखें और फ़ोन पर कभी-कभी बात की। कोई सेल फ़ोन नहीं, कोई स्मार्ट फ़ोन नहीं, कोई वीडियो नहीं। 


श्वेत-श्याम फ़ोटो में बाऊजी-मम्मी हैं। शादी के कुछ समय बाद। तब स्टूडियो में फ़ोटो खींचवाने जाते थे। आज के महँगे स्मार्टफ़ोन से लिए फ़ोटो से लाख गुना बेहतर। कितनी ही बार देखो, मन नहीं भरता। 


राहुल उपाध्याय । 5 मई 2020 । सिएटल





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