Wednesday, May 26, 2021

36 में से 36

36 में से 36! 


जी नहीं, ऐसा मेरा सौभाग्य कहाँ कि मुझे सौ प्रतिशत अंक मिले। और न ही ये गुण हैं जो पत्रिका मिलान में मिले। 


यह थी मेरी शिमला के केंद्रीय विद्यालय में पढ़ी आठवीं कक्षा की रेंक। 36 छात्रों में से मैं सबसे आख़री पादान पर था। 


था तो था, पर इसे रिपोर्ट कार्ड में साफ़-साफ़ लिखने की क्या आवश्यकता थी? 


लिख तो दिया। लेकिन मुझ बावले को, रतलाम के जैन स्कूल से पढ़े को कोई हवा नहीं थी कि इसका क्या अर्थ होता है। त्रैमासिक सत्र क्या होते हैं? होमवर्क क्या होता है?


कोई और होता तो बाऊजी को दिखाने से पहले दस बार सोचता। मैंने थमा दिया। उन्होंने दस्तखत कर दिए। 


बात ख़त्म। कोई हंगामा नहीं। कोई ड्रामा नहीं। कोई डाँट नहीं। कोई भाषण नहीं। 


जीवन पूर्ववत चलता रहा। 


मैं, अर्चना और हमारा दो घंटे पैदल चल कर स्कूल जाना चलता रहा। 


मैं हर विषय में फेल था। हर विषय के आगे मेरे अंकों को लाल गोले से हाईलाइट किया गया था। 


यह रहे टेस्ट के अंक। हर टेस्ट 70 अंक का है। 


अंग्रेज़ी - शून्य

हिन्दी - पाँच 

संस्कृत - शून्य 

गणित - पन्द्रह 

विज्ञान - तीन

सामाजिक अध्ययन - अनुपस्थित 


यह रहे होमवर्क के अंक। होमवर्क 30 अंक का है। 


अंग्रेज़ी - चौदह

हिन्दी - पाँच 

संस्कृत - छ:

गणित - तेरह

विज्ञान - दस

सामाजिक अध्ययन - शून्य 


कुल 600 में से 71 हासिल किए थे मैंने। 


अध्यापक ने लिखा था: वेरी वीक। मस्ट वर्क वेरी हार्ड। 


दूसरे सत्र में 36 में से 35 रेंक थी। न जाने वो 36 वीं पादान वाला आज किस देश में होगा। 


अध्यापक ने लिखा था: नो इम्प्रूवमेन्ट व्हाटसेवर।  पुट इन रियल हार्ड वर्क। 


इस बार भाई साहब ने दस्तखत किए। बाऊजी शहर से बाहर गए होंगे। 


उस सत्र के बाद कभी रेंक नहीं लिखी गई। न उस साल, न किसी ओर साल। न पहले, न बाद में। 


इसे महज़ संयोग समझूँ या कुछ और?


आठवीं पर रोका नहीं। वार्षिक परीक्षा आते-आते शायद कुछ सुधार हो गया। मात्र दो अंक रह गए थे पास होने में। सो दान में मिल गए। 


नवीं कलकत्ता के केंद्रीय विद्यालय (फ़ोर्ट विलियम्स) से की। वहाँ भी यही हाल रहा। वार्षिक परीक्षा में गणित और अंग्रेज़ी में पूरक आई। 


गर्मी की छुट्टियों में बाऊजी ने अपने एक एल-एल-एम के छात्र, और हमारे पारिवारिक मित्र, शम्भु दा से कहा कि मुझे गणित पढ़ा दें। 


यह बहुत बेतुकी बात है। गणित का विधि से क्या लेना-देना?


लेकिन बाद में समझ आया कि शम्भु दा से बढ़िया और कोई शिक्षक नहीं हो सकता था। पहली बात तो वे परिवार के मित्र थे सो कोई झिझक नहीं थी। दूसरा वे अच्छी तरह से समझ जाते थे कि मुझे क्या कठिनाई हो रही है, क्यों हल करने का कोई तरीक़ा आसानी से समझ नहीं आ रहा है। 


गणित में तो बेड़ा पार हो गया। अंग्रेज़ी में चूक गया। मुझे याद है मैं अकेला कक्षा में बैठा था। और मुझे लिखना था कोई यात्रा वृतांत। अंग्रेज़ी में। मैं वैष्णोदेवी की यात्रा के बारे में लिखने लगा। दो साल पहले बाऊजी जम्मू विश्वविद्यालय में लॉ पढ़ा रहे थे। तब हम सब गए थे। जम्मू से कटरा बस से। कटरा से अधक्वारी तक की पैदल चढ़ाई। फिर वैष्णोदेवी तक का उतार। ठंडे पानी में आधी रात को खुले में नहाना। संकुचित गुफ़ा में बमुश्किल दर्शन करना। सब तब भी और आज भी अच्छी तरह याद था।  


दिक़्क़त थी अंग्रेज़ी की। पैदल चलने की अंग्रेज़ी क्या होगी? मुझे याद है मैंने 'लेग' शब्द का इस्तेमाल किया था। जो कि आज हास्यास्पद लगता है। 


ख़ैर, साल दोहराना पड़ा। अंग्रेज़ी की अध्यापिका, मिस सान्याल, से मैं बहुत नाराज़ रहा। मुझे फूटी आँख नहीं सुहाई। सब लोग उन्हें 'काली माई' कहते थे। मुझे अच्छा लगता था कि सही नाम दिया है। 


नई अध्यापिका, मिस चन्द्रा, उनसे बिलकुल विपरीत। जितनी सुन्दर, उतना मधुर व्यवहार। या जितना मधुर व्यवहार, उतनी सुन्दर। तय करना मुश्किल कि वे ज़्यादा अच्छी हैं, या ज़्यादा सुन्दर। या कि वे अच्छी हैं, इसलिए सुन्दर हैं। गोल चेहरा। कान में सुन्दर सोने की बालियाँ। लटकने वाली। 


उन्होंने मुझे अंग्रेज़ी सीखने का आसान तरीक़ा बताया। वे बातों-बातों में जान गईं कि मुझे फ़िल्में पसन्द हैं। उन्होंने कहा कि तुम फ़िल्मों की कहानियाँ अंग्रेज़ी में लिखा करो। बस अंग्रेज़ी लिखना आसान हो जाएगा। 


उन दिनों ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फाँसी दी गई थी। मुझे उस घटना ने बहुत प्रभावित किया। मैंने भुट्टो और 'आनन्द' की कहानी जोड़ दी। जो कहानी बनी उसमें अंत में बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में भुट्टो को फाँसी लगते ही, दूर किसी गाँव में नवजात शिशु का आगमन उसके रोने की आवाज़ से हुआ। 


चन्द्रा मैडम बहुत भाव-विभोर हुई। बहुत शाबाशी दी। 


अमेरिका आने के बाद भी मैं उनसे संपर्क में रहा पत्राचार द्वारा। 


फिर टूट गया। 


उसके बाद कभी किसी विषय में फेल नहीं हुआ। 


राहुल उपाध्याय । 26 मई 2021 । सिएटल 



1 comment:

Unknown said...

Good one Rahul sir! What you’ve achieved is an awesome feat and you narrated the experience it really well.