Saturday, January 22, 2022

कभी-कभी




कभी-कभी 



*


राहुल उपाध्याय




-॰-









पात्र काल्पनिक हैं। 

कहानी सच्ची है। 

विचार मेरे हैं। 












-॰-



जो हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ी ख़ुशी का दिन था, वहीं आज टीस भर देता है। 


कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है 

कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए


कभी-कभी लगता है कि क्यूँ हमने इसे अपना गीत बनाया। 


हम दोनों ही अमिताभ के भक्त थे। मैं कुछ ज़्यादा, वो कुछ कम। इतनी कम कि उसने 'शोले' कभी देखी ही नहीं। वह इतनी छोटी है कि 'शोले' उसकी पैदाइश के पहले ही आ के चली गई थी। जब तक मुझे यह नहीं पता था कि वह इतनी छोटी है, मैं समझता था कि जिसने 'शोले' नहीं देखी, उसे हिंदी फ़िल्म देखने का कोई हक़ नहीं है। जैसे कि जिसने क, ख, ग न सीखा और सीधा कविता पढ़ने लगे। वैसे मैं आज भी मानता हूँ कि जिसने 'दीवार' (यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित) नहीं देखी, उसे देख लेनी चाहिए। 


कभी-कभी उसने कईं बार देखी। जबकि वह 'शोले' के बाद आई थी। क्योंकि वह उसने मेरे कहने पर मेरे साथ देखी और बाद में अलग से भी। उसकी आदत थी वह पात्रों को उनके नाम से बुलाती थी। पूजा के बारे में बात करती थी, राखी का नाम भी नहीं लेती थी। 


वह मेरी पूजा थी। मैं उसका अमित। न जाने क्यों वही किरदार हमें आकर्षित करते हैं जो कभी मिल नहीं पाते हैं। अगली बार कोई मिली तो मैं ध्यान रखूँगा कि न वो मेरी पूजा हो, न मैं उसका अमित। 


मैं बक़ायदा अमित जैसा बंद गले का स्वेटर पहन कर उससे मिलता था। वह भी यश चोपड़ा की ख़ूबसूरत नायिकाओं के परिधान में आती थी। कभी-कभी के गीत के फ़िल्मांकन की तरह कभी वो मेरे काँधे पर सर रखती थी, कभी वो मेरी बाहों में भर जाती थी, कभी मैं उसकी गोद में सर रख देता था, और वो अपनी ज़ुल्फ़ से मेरा चेहरा ढक देती थी। कभी मैं उसके बालों में उँगली फेरता, कभी वो मेरे शर्ट के बटन से खेलती। कभी आँख भर कर बस देखती रहती। हर प्रीत का गाना उस पर फ़िट बैठता था। वह सिर्फ़ प्यार और प्यार थी। कभी तो विश्वास ही नहीं होता था कि कोई कैसे इतना प्यार कर सकता है। बिना किसी अपेक्षा के। बिना शिकायत के। बिना मनमुटाव के। हर चीज़ इतनी सहज। इतनी आसान। ऐसे में ही लगता है कि चाँद-तारे तोड़ लाना भी शायद आसान होता होगा। 


जिन दिनों 'कभी-कभी' मैंने पहली बार देखी थी, उन दिनों मेरी ज़िंदगी में कोई और थी। 


हम दोनों छोटे थे। पर हमउम्र थे। प्यार की कोई उम्र नहीं होती। जब बिल गेट्स महज़ 20 वर्ष की उम्र में एक कम्पनी चला सकते हैं। हम प्यार क्यों नहीं कर सकते? 


और प्यार करने के लिए जो चाहिए वो सब तो था हमारे पास। घर से स्कूल तक का पाँच किलोमीटर का रास्ता। शिमला का लुभावना मौसम। चाराने की गर्मागर्म मूँगफली। (पैसे वो ही देती थी। मुझे कभी जेबखर्च नहीं मिला। न ही मैंने अपने बच्चों को दिया। यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी जारी है।) हनीमून पर आए जोड़ों की (उनके कैमरों से उनके कहने पर) तस्वीर उतारना। कालीबाड़ी से पण्डित जी का आशीर्वाद लेना। साथ में मखानों का प्रसाद भी। 'गुफा' रेस्टोरेन्ट के सामने लगी मूर्ति के घड़े से हाथ फैलाते ही बहते पानी का आना और उसे पीना। स्कूल से वापस आते वक्त दौड़ते हुए पहाड़ी ट्रेन पकड़ना। टिकट न लेना और पटरियों की तरफ़ उतर कर दौड़ते हुए घर पहुँचना। 


प्यार नहीं होगा तो क्या होगा?


हर प्यार की कोई न कोई निशानी अवश्य होती है। मेरे पास भी है। मेरे होंठों पर उन चाँदी सी चमकती बूँदों का स्वाद जो सिसिल होटल के सामने वाले गज़ेबो में मैंने उसके कस के बांधे गए बालों के बीचोंबीच की माँग से चुराया था। 


वह भी समझ गई थी। मैं भी समझ गया था। दोनों मानो एक युग तक बिलकुल चुप खड़े रहे। न कुछ कहा, न कुछ किया। स्तब्ध। नि:शब्द। 


उस दिन हमारी ट्रेन छूट गई थी। हम घर जा रहे थे। और बारिश में बुरी तरह फँस गए थे। इसलिए गज़ेबो में शरण ले ली थी। 


अब हम आज़ाद थे। बारिश हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी। एक गर्मी सी आ गई थी। दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दौड़ते-भागते भीगते-भागते घर पहुँचें। 


इसके बाद इस प्रकरण पर कभी कोई बात नहीं हुई। हम इतने क़रीब आ चुके थे कि और क़रीब आने की कोई ज़रूरत नहीं महसूस हो रही थी। 


फिर वही पाँच किलोमीटर का रस्ता, वही मूँगफली, वही ख़ुशनुमा मौसम, वही कालीबाड़ी, वही 'गुफा', वही ट्रेन। 


सब अच्छा चल रहा था। चलता जा रहा था। 


और फिर गर्मी की छुट्टियों में ननिहाल गया तो वापस नहीं लौटा। क़िस्मत कलकत्ता ले गई। संजुक्ता के पास। 


शिमला से कभी विदाई नहीं ली। अलविदा नहीं कहा। ब्रेकअप नहीं हुआ। 


बस पीछे छूट गया। 


उससे ब्रेकअप नहीं हुआ। लेकिन पूजा से हुआ। एक नहीं, कई बार हुआ। इतनी बार कि फिर तो आदत सी पड़ गई। 


ब्रेकअप क्यों होते हैं? जैसे जुड़ने की, चाहने की, प्यार करने की कोई वजह नहीं होती, ब्रेकअप की भी नहीं होती। बस हो जाते हैं। 


जब प्यार हो जाता है दुनिया हसीन लगती है। कदमों में फुर्ती आ जाती है। आँखों में चमक। मौसम रंगीन। सब पर प्यार आता है। सब अच्छा लगता है। कुछ भी बुरा नहीं लगता है। 


जब ब्रेकअप होता है। सब बुरा लगता है। कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। एक ख़ालीपन दिल में घर कर जाता है। इंसान कारण खोजता रहता है। टाईम मशीन के आविष्कार की कल्पना करता है। कब, कैसे, क्या हो गया? मैंने क्या ग़लत किया? क्या कुछ किया जा सकता है ताकि स्थिति सुधर जाए? क्या जो हुआ अच्छा ही हुआ? अच्छे दिन फिर आएँगे?


शिमला का प्यार न पहला था, न अंतिम। 


पूजा से ब्रेकअप पहला ब्रेकअप था, अंतिम नहीं। 


पूजा से पुनर्जन्म में विश्वास जगा। और मोक्ष से मोहभंग हुआ।  





















-॰-













22 जनवरी 2022

सिएटल 









-॰-

No comments: