Thursday, November 18, 2021

कार्तिक पूर्णिमा

आज कार्तिक पूर्णिमा है या कल, कुछ ठीक से नहीं पता। लेकिन कला के लिए आज है। चूँकि मम्मी की वजह से मेरे पास दो फलती-फूलती हरी-भरी तुलसी हैं, वह तुलसी की पूजा करने आई। 


पूजा की थाली बहुत ही आकर्षक थी। पहली बार चावल के आटे के दो सुन्दर सफ़ेद दीपक देखे। बिलकुल मोम के लग रहे थे। गेहूँ के आटे के चौमुखी दीपक तो मैंने भी लगाए हैं दीवाली के दिनों में। चावल के पहली बार सुनें और देखें। 


और फिर एक विचित्र दीपक। दीपक के ऊपर दीपक। वह दीपक पूजनीय है इसलिए उसे सीधे थाली में नहीं रख सकते। 


इस विशेष दीपक की बाती भी विशेष है। यह 365 पतली-पतली बत्तियों को मिलाकर बनती है। पतली-पतली बत्तियाँ गड्डमड्ड नहीं हो गईं थीं। बहुत बारीकी से जोड़ी गईं थीं। और एक बाती से बाँधी गईं थीं। 


तीनों दीपक मुझसे ही जलवाए। बहुत अच्छा लगा। मैं भी पूजा का हिस्सा बन गया। 


आज दिनभर मैंने न कुछ खाया न पिया। काम में इतना मशगूल था कि समय का भी ध्यान नहीं रहा। वो तो किसी ने पूछा व्हाट्सएप पर कि आज क्या खाया तो ध्यान आया कि आज तो कुछ खाया-पीया नहीं। पानी भी नहीं। रोज़ सुबह मम्मी की आदत के अनुसार तुलसी को जल देता हूँ एक ताम्बे के लौटे से। लौटे दो हैं। एक मैं ख़ाली कर देता हूँ ग्लास में अपने लिए। वह गिलास वैसे ही पड़ा मेरा मुँह ताक रहा था। 


पता चला कला ने भी आज कुछ खाया-पीया नहीं। निर्जला व्रत रखा है। 


मेरा भी अनजाने में व्रत हो गया। 


दक्षिण में करवा चौथ की जगह वरा-लक्ष्मी का निर्जला व्रत रखा जाता है। उस दिन कला ने पानी पी लिया था। 


राहुल उपाध्याय । 18 नवम्बर 2021 । सिएटल 



No comments: