Monday, November 15, 2021

मन्नू भंडारी

मन्नू भंडारी से मेरा परिचय कक्षा 3 में ही हो गया था, जब बाऊजी के साथ मम्मी और हम दो भाई पहली बार एक इकाई परिवार के रूप में मध्य प्रदेश से बहुत दूर दिल्ली में रह रहे थे। 


तब तक हम दो भाई पिछले चार साल से सैलाना में दासाब (नाना) के घर में ही रह रहे थे। और मैं दासाब के ही स्कूल में पढ़ रहा था। दिल्ली में हमारा किसी स्कूल में दाख़िला नहीं हुआ। एक-दो महीने बाद हम वापस सैलाना आ गए। तब बाऊजी इण्डियन लॉ इन्स्टिट्यूट में पढ़ा रहे थे। शायद वे वह नौकरी छोड़कर फिर कहीं बाहर चले गए थे। शायद न्यूज़ीलैण्ड। 


दिल्ली में जितने भी दिन रहा, स्कूल तो नहीं गया, पर सीखा बहुत। जीवन के कई पहलुओं पर पहली बार निगाह पड़ी। माता-पिता को नज़दीक से देखा। उनके बीच होती खटपट का हिस्सा बना। 


सैलाना में यह सब कभी नहीं देखा। 7 बच्चे थे। 8 बड़े। घर भी दिल्ली की अपेक्षा लम्बा-चौड़ा था। आगे स्कूल था। पीछे बगीचा था, कुआँ था। ऊपर भी एक हिस्सा था। 


शायद इस वजह से न देखा हो। सब सदैव सुचारू रूप से चलते देखा। समय पर सोना, उठना, स्नान, और भोजन। उससे ज़्यादा कुछ चाहिए भी नहीं था। 


दिल्ली में तनाव देखा। मम्मी को रोते देखा। दुख में देखा। 


तभी धर्मयुग में प्रकाशित मन्नू भंडारी द्वारा रचित धारावाहिक उपन्यास 'आपका बंटी' में मम्मी की रूचि देखी। मम्मी चौथी तक पढ़ी थीं पर नईदुनिया और पत्रिकाओं को पढ़ती रहती थीं। दासाब पत्र-पत्रिकाओं के विक्रेता भी थे। जिन्हें परिवार के सब लड़के साईकल से पूरे सैलाना में बाँटने जाते थे। मैं इस अनुभव से वंचित रह गया। चौथी कक्षा के बाद मैं सैलाना में नहीं रहा, इसलिए। (और इसी वजह से साईकल चलाना भी नहीं सीख पाया जब तक कि मैं बनारस काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ने न गया। तब तक मैं 20 वर्ष का हो चुका था।)


मैंने भी उनकी देखा-देखी 'आपका बंटी' के कुछ अंश पढ़ें। कुछ समझ आया, कुछ नहीं। 


लेकिन उनका नाम हमेशा याद रहा। 


बाद में उनकी पटकथा पर आधारित फ़िल्म 'स्वामी' देखी। बहुत खुशी हुई। दसवीं के पाठ्यक्रम में उनकी कहानी 'कमरे, कमरा और कमरे' पढ़ी। अच्छा लगा। फिर राजेंद्र यादव जी के साथ उनके कटु अनुभवों के बारे में पढ़ा। बहुत-बहुत दु:ख हुआ। यह जानकर और दु:ख हुआ कि इतनी सफल लेखिका होने के बावजूद वे एक असहाय सी नज़र आईं। 


उनके जीवन और लेखन पर यह 25 मिनट का वीडियो बहुत ही बढ़िया है। समग्र एवं स्पष्ट। 


https://youtu.be/0S5oyo53JAo


राहुल उपाध्याय । 15 नवम्बर 2021 । सिएटल 


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'महाभोज' विद्रोह का राजनीतिक उपन्यास है. यह उपन्यास भ्रष्ट भारतीय राजनीति के नग्न यथार्थ को प्रस्तुत करता है. 


'बन्दी', 'मैं हार गई', 'तीन निगाहों की एक तस्वीर', 'एक प्लेट सैलाब', 'यही सच है', 'आंखों देखा झूठ' और 'त्रिशंकु' संग्रहों की कहानियों से उनके व्यक्तित्व की झलक मिलती है. 'एक कहानी यह' भी मन्नूजी की आत्मकथ्यात्मक कृति है. बिना दिवारों के घर, उजली नगरी चतुर राजा उनके प्रसिद्ध नाटक हैं.


बच्चों के लिए उन्होंने 'आसमाता', 'आंखों देखा झूठ' और 'कलावा' जैसी रचनाएं रचीं. पति राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उपन्यास 'एक इंच मुस्कान' दुखभरी प्रेमगाथा की कहानी है.



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