हर वर्ष नवम्बर के चौथे गुरुवार को अमेरिका में धन्यवाद ज्ञापन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस वर्ष मुझे जिन्होंने सहारा दिया, सम्बल बढ़ाया, अकेला महसूस न होने दिया, उनके प्रति मैं धन्यवाद प्रकट करना चाहता हूँ।
उनमें से प्रमुख हैं सुहानी, प्रांशु, मीना, मधु, ममता, अनीता, मनीष-छंदा, राजेश, हरमीत-नीतू, मीनू, चिकी, नूतन, अजय, बृजेश, तरूण, अनिल, रवि जी-रेखा जी, हिन्दबाला मासीजी, बबली, जयू, पंकज, बिट्टू, उमेश और मेरी सहकर्मी डेब।
मार्च में जब मम्मी ने खाना-पीना बंद कर दिया था, मैंने दफ़्तर से एक हफ़्ते की छुट्टी ले ली थी। काम तो घर से ही कर रहा था लेकिन फिर भी चिंता ज़्यादा बढ़ गई थी सो हर पल उनके साथ ही बिताना चाहता था। छुट्टी की ई-मेल जब भेजी तो डेब ने स्वयं मुझसे बातचीत की और एक राह दिखाई जिससे मम्मी की हालत थोड़ी सुधरी और मई के महीने में व्हीलचैयर पर घर से बाहर निकल कर खिलते फूल और चहकते पक्षियों के बीच बैठ सकीं।
सुहानी, प्रांशु और मीना के फ़ोन लगातार आते रहें। हालात का अंदाज़ा लगाते रहें। मुझे ढाँढस बँधाते रहें। बाद में पीथमपुर जा कर रहना, वहाँ का स्वादिष्ट भोजन और जानापाव जाना हमेशा याद रहेगा।
मधु ने भी हर कदम साथ दिया। दोस्ती इतनी बढ़ गई कि जीवन में पहली बार संगम की भी सैर हो गई।
ममता बहुत पहले से मुझसे जुड़ी है और इसी की मुनक्के के नुस्ख़े से मम्मी की न रूकने वाली उल्टी अंततः रूकी।
अनीता से भी पुराना सम्बन्ध है। मम्मी अनीता से बात करके बहुत ख़ुश होती थीं। सबसे कहती थी मेरे पास चीन से भी फ़ोन आते हैं। इन दोनों की फ़ोन पर हुई बात की वीडियो रिकार्डिंग एक दुर्लभ धरोहर और सुखद याद है।
राजेश जो यहाँ रहते हैं, उस राजेश की याद दिलाते हैं जो अब नहीं है। जितना राजेश ने किया उसे लिखा नहीं जा सकता।
हरमीत और उसकी पत्नी नीतू जितने पास में रहते हैं, उतने ही दिल के क़रीब हैं। बहुत बहुत बहुत मदद की। इतनी मदद कि परिवार के सदस्य बन गए हैं। अब मदद, मदद नहीं लगती। प्रेम। बस प्रेम।
मनीष और उनकी पत्नी छंदा। छंदा व्यस्त होते हुए भी आते-जाते घर पर कुछ न कुछ रख जाती। घर खुला ही रहता था। जब आ कर देखता तो चेहरा खिल उठता था तरह-तरह के व्यंजन देख कर।
दिल्ली से मीनू मेरे साथ हरिद्वार तक आई। बाद में बेटे-बहू चिकी-नूतन ने मेरे दिल्ली आवास में हर ज़रूरत का प्रेमपूर्वक ध्यान रखा।
दिल्ली में ही तरूण ने सिम का इंतज़ाम किया ताकि मैं भारत से भी काम कर सकूँ। उसकी मम्मी ने खान-पान का ख़्याल रखा।
अजय, गुजरात से दिल्ली आए। मेरे साथ हरिद्वार तक अस्थि विसर्जन में साथ देने के लिए।
बृजेश, मेरे सहृदय पाठक, जो कि अब परिवार का हिस्सा बन गए हैं। वे भी दिल्ली आए हरिद्वार तक मेरा साथ देने के लिए।
अनिल की वजह से ही मैं भारत भ्रमण कर पाया। उसे कहने की देर थी कि मेरा ट्रेन का टिकट तैयार हो जाता था।
35 साल बाद भोपाल गया। रवि जी और रेखा जी ने आत्मीयता से स्वागत किया। हर तरह की सुविधा प्रदान की। यादगार दिन।
रतलाम में मासीजी के निर्देशन में बबली और जयू हर रोज़ मुझे नए-नए व्यंजन खिलाती-पिलाती रहीं। डायबीटीज़ होने के बावजूद इतनी बढ़िया बंगाली मिठाई लाती थी कि मैं मना नहीं कर पाया। बिना दलिये का नमकीन दलिया हमेशा याद रहेगा।
तराना में पंकज का आतिथ्य और शर्ट। इंदौर में बिट्टू का प्रेम और पिंक शर्ट।
उमेश, जिन्होंने मेरे बेजान शब्दों को आवाज़ दी, संगीत दिया, पंख दिए।
धन्यवाद ज्ञापन दिवस के बारे में और जानकारी के लिए इसे पढ़ें:
https://rahul-upadhyaya.blogspot.com/2020/10/3.html?m=1
राहुल उपाध्याय । 25 नवम्बर 2021 । सिएटल
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