Wednesday, March 8, 2023

तू झूठी मैं मक्कार - समीक्षा

'तू झूठी मैं मक्कार' - लव रंजन की पाँचवीं फ़िल्म है जिसका उन्होंने निर्देशन किया है और लिखी भी हैं। और यह जानकर अच्छा लगा कि यह उनकी बाक़ी फ़िल्मों जैसी मनोरंजक है। इनमें उनकी अपनी एक छाप है। उनके हस्ताक्षर है। जो कि हर कलाकार के साथ होता है, होना भी चाहिए। कई बार लगता है कि वह कलाकार एक खाँचे में बँध गया है। पर क्या बुरा है अगर वो इस खाँचे में ही अपना विस्तार खोजता है। 


यह फ़िल्म बहुत अच्छी है। और ख़ास कर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन रिलीज़ करना एक अच्छा संयोग है। यह फ़िल्म एक कॉमर्शियल फ़िल्म होते हुए भी उन सब मुद्दों को छूती है जिनका ज़िक्र तस्लीमा नसरीन अपनी किताब 'औरत के हक़' में करती हैं। मेरी नज़र में यह किताब हर किसी को अवश्य पढ़नी चाहिए और महिला दिवस के दिन फिर से बार-बार हर साल पढ़नी चाहिए। 


यह एक पारिवारिक फ़िल्म है। बस कुछ लोगों को किस/चुम्बन की प्रचुर मात्रा से एतराज़ हो सकता है। जैसे कि एक ज़माने में बॉबी देखने से बच्चों को मना इसलिए किया जाता था कि उसमें डिम्पल के कपड़े छोटे थे।


मुझे तुमसे प्यार है - यह कहना जितना मुश्किल है उससे भी मुश्किल है किसी से प्यार करने के बाद यह कहना कि अब मुझे तुमसे प्यार नहीं है। यानी ब्रेकअप करना। बस इसी विषय को मुद्दा बनाकर फ़िल्म चलती है और फिर कई अन्य विषयों को छूते हुए समाप्त होती है। 


फ़िल्म है तो कुछ तो ग़लतियाँ होती ही है। कुछ कलात्मकता की दृष्टि से भी छूट जायज़ है। एयरपोर्ट वाली भागाभागी कुछ को परेशान कर सकती है तो कुछ का मनोरंजन। 


प्यार का पंचनामा से लेकर इस फ़िल्म तक लव रंजन ने लम्बे-लम्बे संवादों का इस्तेमाल बखूबी किया है। पर लगभग हर किरदार से लम्बे संवाद बुलवाना थोड़ी ज़्यादती लगी। 


कार्तिक और नूसरत का तड़का भी पसन्द आया। दोनों अब अपनी अच्छी पहचान बना चुके हैं। 


फ़िल्म में हर सीन सौन्दर्य से ओतप्रोत है। बहुत ही मनोहारी फ़िल्म बनी है। एडिटिंग बहुत अच्छी है। एक अच्छी रफ़्तार से फ़िल्म चलती रहती है। इंटरवल न होता तो अच्छा होता। होता तो किसी दूसरी जगह होता तो ज़्यादा अच्छा होता। 


इंटरवल के बाद की बाद की फ़िल्म पहले भाग से ज़्यादा अच्छी है। इंटेन्स सीन्स, ख़ासकर संवाद हीन सीन, बहुत ही बढ़िया है। पृष्ठभूमि में चलता संगीत उन सीन्स को और भी इंटेन्स बनाता है। 


जो इंसान आनन्द को देख रोता है वह इसमें भी अपनी आँखें गीली करेगा। बहुत ही संवेदनशील फ़िल्म है। राजश्री की नहीं है पर उन्हीं की भावनाओं को नये अंदाज़ में प्रस्तुत करने की कोशिश करता है। 


गोद भराई पर फ़िल्माया गया गाना अनावश्यक है।


पूरी फ़िल्म में कोई भी ऐसा किरदार नहीं है जिसे खलनायक कहा जा सके या जिसके विचार से असहमति हो। सब रईस हैं पर अच्छे हैं। बस छोटी को पीते हुए देखना अच्छा नहीं लगा। 


राहुल उपाध्याय । 8 मार्च 2023 । सिएटल 


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