'भीड़' - अनुभव सिन्हा द्वारा लिखी और निर्देशित एक बहुत अच्छी हिन्दी फिल्म है। कुछ दृश्य और संवाद ऐसे हैं जो शायद परिवार के साथ देखने के योग्य न हो।
फ़िल्म कोरोना काल पर आधारित है और उन मानवीय भावनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करती है जो शाश्वत हैं। यही इस फिल्म की सबसे बड़ी शक्ति है। और यही हर कहानी का मज़बूत पहलू भी होता है।
यह कहानी कई मूलभूत प्रश्न उठाती है। दर्शकों को पर्याप्त समय देती है उन प्रश्नों का उत्तर देने के लय। सोचने के लिए। कि ये समस्या कैसे हल की जाए। फिर फ़िल्म स्वयं ही कोई समाधान ढूँढती है। जो गले उतरता है।
फ़िल्म श्वेत-श्याम हैं किंतु सकारात्मक है। आशावादी है। निराशावादी नहीं।
सबके अभिनय उम्दा हैं। कोई किसी से कम नहीं। राजकुमार राव, भूमि पेंडनेकर, आशुतोष राणा, पंकज कपूर। सब बढ़िया हैं।
फ़िल्म की शुरुआत में कोरोना काल की नाटकीयता उतनी विश्वसनीय नहीं लगती। हमने सच्चाई देख रखी है और अभी भूले नहीं हैं। तब मन खिन्न होता है कि ये क्या चल रहा है? अभिनेता लिए ही क्यूँ? क्यों नहीं असली टीवी फ़ुटेज दिखा देते हैं। बस इस कमजोरी को जाने दे तो बाद में फ़िल्म बहुत अच्छी रफ़्तार से चलती है और कहानी का असली रंग नज़र आता है।
टाईटल्स से पहले की रील हिचकाक की याद दिलाती है। बिना कुछ बताए सब बता देना।
राहुल उपाध्याय । 25 मार्च 2023 । सिएटल
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