सेल्फ़ी बहुत अच्छी और साफ़-सुथरी फ़िल्म है। बॉक्स ऑफिस पर हिट या फ़्लॉप रही इससे हमें कोई सरोकार नहीं होना चाहिए।
यह मलयालम फ़िल्म - ड्राइविंग लायसेंस - का हिन्दी रूपांतर है।
इस फ़िल्म में यह दिखाया गया है कि हालात के हाथों आदमी कैसे अपना आपा खो देता है, खुद का नुक़सान कर लेता है, वो जैसा नहीं है वैसा बन जाता है।
फ़िल्म की शुरुआत में ही दो गाने डाल दिए हैं चूँकि बाद में गानों का कोई स्कोप नहीं है। पहले दो गाने नहीं होते तो फ़िल्म चुस्त बन सकती थी।
फ़िल्म में अंत तक रोमांच बना रहता है। दो नायकों के बीच तनातनी चलती रहती है। कभी एक का पलड़ा भारी तो कभी दूसरे का।
भारत के ड्राइविंग लाइसेंस लेने के क्या नियम-क़ानून हैं, पता हो तो और भी रोमांचक हो सकती है। नहीं पता हो तो भी। मुझे नहीं पता फिर भी भरपूर आनन्द आया। बच्चों को तो प्रायः पता नहीं होते लेकिन उन्हें भी पसन्द आएगी यह फ़िल्म।
भोपाल वासियों के लिए यह फ़िल्म और भी महत्वपूर्ण है चूँकि इसमें ज़्यादातर आउटडोर शूटिंग भोपाल की है। राजा भोज की मूर्ति, वहाँ के पुल, वहाँ का एयरपोर्ट, वहाँ की झील। सब इस फिल्म में देखे जा सकते हैं।
फ़िल्म के संवाद बहुत अच्छे हैं। पटकथा भी बढ़िया है। हर बात गले उतरती है। नुसरत भरूचा का रोल कुछ ख़ास नहीं है फिर भी अभिनय जीवंत है। अच्छी अभिनेत्री हैं। फ़िल्म बहुत ही यथार्थवादी है। कोई बंदूक़-वंदूक नहीं। सब सहज लोग हैं।
अंतिम दृश्य में क्लाईमेक्स के बाद एक जगह कन्टिन्यूटी में ग़लती हुई है वरना बेहतरीन फिल्म है।
राहुल उपाध्याय । 2 मार्च 2023 । सिएटल
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