अब तक आठ अभिभावक-संतान की जोड़ियों को नोबेल पुरस्कार दिया जा चुका है।
क्या इसे नेपोटिज़म माना जाए?
हो भी सकता है। पर यह तो स्वाभाविक है कि जो जहां पैदा होता है वो वही से आगे या पीछे हो जाता है। इसका नेपोटिज़म से कोई लेना देना नहीं है।
जो बांग्लादेश में पैदा होगा उसके लिए अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान होना उतना आसान नहीं है जितना इंग्लैंड या अमेरिका में पैदा होने वाले के लिए।
उसी तरह से एक वैज्ञानिक के बेटे को विज्ञान में रुचि लेना स्वाभाविक है। डॉक्टर के बेटे को डॉक्टरी में। वकील के बेटे को वकालत में। गायक के बेटे को गायकी में।
यह भी स्वाभाविक है कि जिस घर में जो पैदा होता है उसे वे सारी सुविधाएँ आसानी से मिल जाती हैं जो घर में पहले से ही मौजूद हैं। स्टेथोस्कोप। माइक्रोस्कोप। टेलीस्कोप। टेलीविजन। वाद्ययंत्र। कम्प्यूटर। फोन। कार। कैमिकल्स। तराज़ू। इंटरनेट। वाईफ़ाई।
और यह भी स्वाभाविक है कि उन्हें वह सब जानकारी मिल जाती हैं आसानी से जो दूसरों को नहीं मिलती। जैसे कि स्कालरशिप कहाँ से मिल सकती है। आवेदन की प्रक्रिया क्या है।
मैं स्वयं कलकत्ता में था इसलिए आयआयटी के बारे में जान पाया। सैलाना में रहता तो खबर ही नहीं लगती। आयआयटी में था इसलिए विदेश में पढ़ने के लिए स्कालरशिप जुटा पाया। कलकत्ता के किसी विश्वविद्यालय से पढ़ता तो शायद नहीं।
नोबेल पुरस्कार के आवेदन की भी कुछ प्रक्रिया होगी। या सिफ़ारिश की। जो लोग इन्हें मनोनीत करते हैं उनकी जानकारी में आने के लिए कुछ करना होता होगा। नेचर जैसी पत्रिकाओं में लेख छापने होते होंगे। विश्व भर की प्रतिष्ठित सेमिनारों में हिस्सा लेना होता होगा।
ये सब जानकारी माता-पिता अपने बच्चों को आसानी से दे सकते हैं, बता सकते हैं, मदद कर सकते हैं।
इन्हीं सब कारणों से शायद इन संतानों को कुछ फ़ायदा हुआ होगा जो अन्य लोगों को नहीं मिल पाया।
फिर भी सिर्फ़ आठ ही ऐसी जोड़ियाँ हैं। 954 में से 16 निकाल दें और कुछ पति-पत्नी/भाई-भतीजे वाले भी निकाल दें तो नौ सौ प्राणी ऐसे हैं जिन्होंने अपने बलबूते पर नोबेल पुरस्कार हासिल किया।
एक और बात। ये सारी जोड़ियाँ विज्ञान के क्षेत्र में ही हैं। शांति पुरस्कार और साहित्य के क्षेत्र में नहीं। शायद इसकी वजह दो हैं। एक तो विज्ञान के क्षेत्र में ज़्यादा विजेता हैं क्योंकि विषय ज़्यादा है और लोग एक टीम के तौर पर भी काम करते हैं। साहित्य में एक अकेला ही रचनाकार होता है। दूसरी वजह यह कि साहित्य के क्षेत्र में उतनी सुविधाएँ आवश्यक भी नहीं होती कि रचनाकार की संतान को बाक़ी लोगों से ज़्यादा फ़ायदा मिले। काग़ज़-क़लम तक़रीबन सबके पास हैं। उच्च शिक्षा शायद न मिल पाए। लेकिन उच्च शिक्षा का अच्छे साहित्यकार से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है।
राहुल उपाध्याय । 3 मार्च 2023 । सिएटल
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