Saturday, December 4, 2021

4 दिसम्बर 2021

29 सितम्बर 1966 को बाऊजी बम्बई से लंदन गए। उनके टिकट का खर्च ब्रिटिश काउंसिल ने उठाया था। 


यह मेरी, मम्मी और भाईसाब की पहली यात्रा थी बम्बई की। मैं तीन साल का होने वाला था। मुझे उस दिन की बिलकुल भी याद नहीं है। उस दिन की क्या, उस साल की ही कोई याद नहीं है। 


वे जब लौटे, 1970 में, मैं सात का होनेवाला था। वह रात अच्छी तरह से याद है। 


उसके बारे में यहाँ पढ़ें:

https://rahul-upadhyaya.blogspot.com/2021/06/20-2021.html?m=1


1966 और 1970 के बीच की बहुत सी यादें हैं। 


जैसे कि बाऊजी लंदन से बहुत ही सुन्दर फ़ोटो पोस्टकार्ड भेजा करते थे। जिन पर लंदन के विभिन्न प्रसिद्ध स्थलों की रंगीन तस्वीर होती थी। कभी कोई फ़व्वारा, कोई बाग, कोई महल, कोई बीच। बहुत अच्छा लगता था। लेकिन कभी यह नहीं लगा कि 'मेरे' बाऊजी ने 'मेरे' लिए भेजा है। बाऊजी से कोई निजी रिश्ता नहीं था। यहाँ तक कि किसी से भी कोई निजी रिश्ता नहीं था। मम्मी से भी नहीं। मम्मी, मामीसाब, हिन्दबाला मासीजी, बाई (मेरी नानी) किसी में कोई अंतर न था। 


संयुक्त परिवार में सब सबके थे। साइकिल किसी की नहीं थी। सबकी थी। कुआँ किसी का नहीं था। सबका था। बिस्तर किसी का नहीं था। सबका था। पलंग तो थे ही नहीं। कमरे भी नहीं। सब कुछ सबका था। 


हिन्दबाला मासीजी मुझसे नौ साल ही बड़ी है। और अब कम उम्र में शादियाँ नहीं होती थीं। वे हम सब बच्चों से बड़ी थीं। 


वे मुझसे बाऊजी के लिए एक दो लाईन लिखने को कहतीं थीं। उन दिनों एक गाना प्रचलित था, उसकी लाईन लिखने कहती थी। 


सात समन्दर पार से

गुड़ियों के बाज़ार से

छोटी सी एक गुड़िया लाना

पापा जल्दी आ जाना


तब सोचा नहीं कि बाक़ी बच्चों से क्यों नहीं कहती थीं? 


दासाब (मेरे नाना) का स्कूल घर के बाहरी हिस्से में एक लम्बे से हॉल में लगता था। उसके खम्बों पर कुछ तस्वीरें फ़्रेम में लगी रहती थीं। उनमें से एक में मामासाब की तस्वीर थी। दूसरे में बाऊजी की। मामासाब की तो चिर-परिचित स्टूडियो में ली गई हेडशॉट वाली फ़ोटो थी। बाऊजी की थी अच्छे शर्ट-पेंट में आटा गूँधते हुए की। लंदन में वे अपना खाना खुद बनाते थे। 


यह भी याद है कि सैलाना में नाना के यहाँ एक ही रेडियो था। उसे भी गर्म होने में। वक्त लगता था। फिर आवाज़ आती थी। 


एक बार बाऊजी ने लिखा था कि वे बीबीसी के स्टूडियो में जाकर किसी कार्यक्रम का हिस्सा बनकर हमें सम्बोधित करेंगे। मुझे ठीक से याद नहीं कि क्या कहा। पर अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई थीं उन्हें सुनने के लिए। मम्मी बताती थीं कि उन्होंने मालवी में अपने माता-पिता को सम्बोधित कर के कहा कि 'मैं यहाँ ठीक हूँ। चिंता न करें।'


आज 4 दिसम्बर 2021 को उन्हें गुज़रे आठ साल हो गए। 


राहुल उपाध्याय । 4 दिसम्बर 2021 । सिएटल 





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