Sunday, December 26, 2021

बर्फ़ 2021

इस मौसम की पहली बर्फ़ कल गिरी। क्रिसमस के दिन बर्फ गिरे और चारों ओर सफ़ेदी छा जाए तो सबका मन उल्लास से भर जाता है। 


मुझे बर्फ बहुत पसंद है। शिमला में भी पसन्द थी। सिनसिनाटी, इण्डियनापोलिस, और फ़िलेडेल्फ़िया में भी। अब सिएटल में भी। 


बर्फ जब गिरती है कोई आवाज़ नहीं होती। बिलकुल सन्नाटा सा छा जाता है। यह मुझे पता था। लेकिन सच में  तब पता चला जब मुझे मेरे बड़े बेटे ने बताया। तब वह बारह वर्ष का था। 


बर्फ के प्रति जो मेरा आकर्षण है, उसे मैंने इस कविता के ज़रिए समझाने की कोशिश की है। 


राहुल उपाध्याय । 26 दिसम्बर 2021 । सिएटल 


*मर्म बर्फ़ का* 


*--- एक ---*

गिरि पर गिरी

धीरे से गिरी

धरा पर गिरी

धीरे से गिरी


न गरजी

न बरसी

नि:शब्द सी

बस गिरती रही


रुई से हल्की

रत्न सी उज्जवल

वादों से नाज़ुक

पंख सी कोमल

बन गई पत्थर

जो कल तक थी कोपल


ज़मीं और आसमां में

यही है अंतर

देवता भी यहाँ आ कर

बन जाता है पत्थर


*--- दो ---*

विचरती थी हवा में

बंधन से मुक्त

धरा पर गिरी

तो हो जाऊँगी लुप्त


यही सोच कर

गई थी सखियों के पास

कि मिल-जुल के

हम कुछ करेंगे खास


लेकिन कुदरत के आगे

न चली एक हमारी

देखते ही देखते

पाँव हो गए भारी


जा-जा के छाँव में

मैं छुपती रही

आ-आ के धूप

मुझे चूमती रही


जब बोटी-बोटी पिघली

तब बेटी थी निकली


सोचा था उसे

तन से लगा कर रहूँगी

जो दु:ख मैंने झेलें

उनसे उसे बचा कर रहूँगी


मैं थी चट्टान सी दृढ़

और वो थी चंचल कँवारी

एक के बाद एक

छोड़ के चल दी बेटियाँ सारी


मैं जमती-पिघलती

झरनों में सुबकती रही

कभी क्रोध में आ कर

कुण्ड में उबलती रही


माँ हूँ मैं

और जननी वो कहलाए

कष्ट मैंने सहें

और पापनाशिनी वो कहलाए


ज़मीं और आसमां में

यही है अंतर

यहाँ रिसते हैं रिश्ते

वहाँ थी आज़ाद सिकंदर


*--- तीन ---*

ज़मीं और आसमां में

यही है अंतर

परिवर्तन का सदा

धरती जपती है मंतर


आसमां है

जैसे का तैसा ही कायम

धरती ही रुप

बदलती निरंतर


जो भी यहाँ

आया है अब तक

लौट के गया

कुछ और ही बन कर


चाँद भी जब से

इसके चपेटे में आया

ख़ुद को बिचारे ने

घटता-बढ़ता ही पाया


राहुल उपाध्याय । 22 नवम्बर 2008 । सिएटल

https://youtu.be/wpHh8UqLMYE 

https://bit.ly/2UV5VXU 






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