एक आम नागरिक और प्रधानमंत्री में क्या अंतर है, यह देखना हो तो मोदी जी को देख लें जो कि भगवान से भी बड़े हैं।
सारा फ़ुटेज मोदी जी खा गए। शिवलिंग को बमुश्किल दो मिनट भी नहीं मिलें।
जिस प्रांगण में सारे भक्त बराबर होने चाहिए वहाँ वी-वी-आई-पीयों की श्रेणियाँ छाँटी जा रहीं थीं।
जहाँ नंगे पैर चल कर जाना चाहिए वहाँ रेड कार्पेट बिछाया गया।
भगवान को पीठ दिखा कर छाती ठोकना किस विनम्रता का प्रतीक है, मैं नहीं जानता।
श्रद्धालुओं को घंटों तक अपने इष्ट से दूर रखकर अपनी जुमलेबाजी सुनाना, किस भक्ति का प्रतीक है, मैं नहीं जानता।
मंदिर की सफ़ाई क्या कर दी, उसे चुनावी मैदान बना दिया। कीर्तन की बजाय रैली आयोजित कर दी।
कब, कहाँ, क्या होना चाहिए इसका विवेक हम सबने खो दिया है। चकाचौंध इतनी है कि किसी को कुछ साफ़ नहीं दिख रहा है। सब गड्डमड्ड हो रहा है।
समझ ही नहीं आता कि हमने किसे चुना है? प्रधानमंत्री? प्रधान सेवक? परिधान मंत्री? योग गुरू? नसीहत देने वाले दादाजी? कहानी सुनाने वाले नाना?
राहुल उपाध्याय । 15 दिसम्बर 2021 । सिएटल
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