Tuesday, December 7, 2021

7 दिसम्बर 2021

https://www.aajtak.in/amp/crime/big-crime/story/maharashtra-aurangabad-horror-incident-pregnant-sister-murder-accused-brother-mother-false-pride-police-crime-ntc-1369379-2021-12-07


पूरा इंटरनेट छान मारा, और भारतीय मीडिया में कहीं भी यह खबर नहीं दिखी। बीबीसी, सी-एन-एन सब पर थी। टाईम्स ऑफ़ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस पर नदारद। 


विक्केट की शादी की धूमधाम सब जगह नज़र आई। 


बहुत खोजबीन के बाद 'आज तक' पर मिली। 


दुख भरी ख़बरों से कहाँ किसी का भला होता है? आर-जे नवेद की मानें तो व्हाट्सएप के चुटकुलों पर ज़िन्दगी बसर की जा सकती है तो चिंता क्यों करना। 


आजकल दवाई से ज़्यादा कपिल शर्मा का शो कामयाब हो रहा है। हर अस्वस्थ प्राणी शो देखकर अपनी पीड़ा भूल जाता है। 


मुझे क्यों इतनी दिलचस्पी है कि मैं हज़ारों मील दूर अमेरिका में बैठे इस खबर की खोजबीन कर रहा हूँ? 


लगता है ये एन-आर-आई का शग़ल है, भारत में जो भी 'ग़लत' हो रहा है उस पर निगाह रखना, बढ़ा-चढ़ा कर बताना। हम तो कितने सुधरे हुए हैं, भारत में कितना पिछड़ापन है। 


लेकिन सच कहूँ तो यह वाक़ई चिंता का विषय है। यह आग जो आज किसी और घर में जल रही है हमारे परिवार को भी नष्ट कर सकती है। हम उसी समाज का हिस्सा है जिसकी ईंटों से हमारा घर बना है। 


हम फ़िल्में देखते हैं और ख़ुश होते हैं जब दो प्रेमी मिल जाते हैं। गीत गाते हैं। गुनगुनाते हैं। 


हम अमिताभ बच्चन- जया भादुड़ी की शादी की तारीफ़ करते हैं। धर्मेन्द्र-हेमा मालिनी की भी। जबकि वह क़ानून के ख़िलाफ़ की गई। यहाँ तक कि उन्हें सांसद भी बना दिया गया। 


लेकिन जब बात खुद पर आती है तो अपेक्षाएँ हावी हो जातीं हैं। सही-ग़लत का विवेक जाता रहता है। 


इस विषय पर जागरूकता बढ़ी है। पर विचार नहीं बदले हैं।'धड़क' फ़िल्म इसी विषय पर बनी थी। 


ऐसा नहीं कि विचार बदल नहीं सकते। सती प्रथा के प्रति विचार बदले हैं। ये भी बदलेंगे। 


जब तक नहीं बदलते तब तक ऐसी ख़बरें हमें पढ़ती रहनी चाहिए, मन उद्वेलित होते रहना चाहिए। 


मेरे पाठक समूह में कुछ हैं जिनके विचार अभी बदले नहीं हैं। मेरा प्रयास हैं कि वे इस पर ध्यान दें। अपनी अपेक्षाओं की ख़ातिर किसी की ख़ुशियाँ न छीनें। किसी को ख़ुशी न दे सकें तो ना सही, दुख तो न दें। 


राहुल उपाध्याय । 7 दिसम्बर 2021 । सिएटल 






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