बाऊजी के गुज़र जाने के बाद मम्मी जब अकेली रहने लगीं तो कई पुराने सम्बन्ध नज़दीक आए।
उनमें से एक थीं इंदौर निवासी सुशीला जीजी। उनके परिवार में हैं अक्षय और कविता। इनके ही परिवार में है कैलाश राठौड़। जो कि कलकत्ता अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए आए थे और हमसे हमारे घर मिलने आते रहते थे।
कुछ साल पहले, कविता अमेरिका आई थीं काम करने। तब उसकी बेटी, नित्या ने स्काइप से (तब व्हाट्सएप नहीं था) मुझसे मम्मी से बात करवाई थी। तब पहली बार मेरी बात सुशीला जीजी से हुई थी। वे मम्मी से बड़ी थीं। स्नेही थीं। मम्मी के ग्रीनकार्ड बनवाने में भी उन्होंने मदद की। एक एफिडेविट बना कर मम्मी के जन्मदिन की पुष्टि की।
इस वर्ष सितम्बर में जब मैं इन्दौर गया तो उनसे मिलने गया। आराम से सो रहीं थीं। प्रेमपूर्वक खाना खिलाया। विदाई दी। और कहा कि हमेशा घर आना और यहाँ रहना। मैं हूँ तब भी, और नहीं हूँ तब भी।
चार दिन पहले अक्षय का फ़ोन आया कि जीजी चार दिन अस्पताल रह कर आई है। दिल का दौरा पड़ा है। सर्जरी नहीं हुई। दवाई चल रही है। खाना पचता नहीं है। पेट में दर्द रहता है।
जीजी ने मुझसे बात की। पूछती रही कि मम्मी के लिए क्या करते थे। अक्षय को बताओ। मैंने बताया।
जीजी कहती रही, मुझसे रोज़ बात करना। मुझे अच्छा लगता है।
मैं रोज़ फ़ोन करता था। भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजे बाद ताकि ठंड कम हो। धूप तेज़ हो जाए।
कल भी बात की। यूँ तो वीडियो कॉल होती थी। पर कल अक्षय का फ़ोन नहीं लगा तो कविता को वीडियो कॉल नहीं की। मेरे डीपी में मम्मी की फ़ोटो को देख बहुत खुश हुई। अच्छी बात की। पेट साफ़ न होने की शिकायत की।
आज न जाने क्यों मैंने जल्दी फ़ोन कर दिया। अक्षय और कविता दोनों को। दोनों ने फ़ोन नहीं उठाया।
थोड़ी देर बाद अक्षय का फ़ोन आया। वीडियो कॉल।
जीजी अर्थी पर थीं।
राहुल उपाध्याय । 21 दिसम्बर 2021 । सिएटल
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