Saturday, February 27, 2021

27 फ़रवरी 2021

मेरे एक गुणी, सादे, सहृदय पाठक इतने स्नेही हैं कि वे मुझे अपना बड़ा भाई मानते हैं। इतना प्रेम कि विश्वास ही नहीं होता कि कोई कैसे किसी की सिर्फ़ एक रचना पढ़कर इतना अपनापन जता सकता है। मैं आज तक उनसे मिला नहीं। फ़ोन पर ही बात होती हैं। कई बार डर लगता है कि कहीं एक दिन मैं उनकी नज़रों से उतर न जाऊँ। 


कल उन्होंने जो किया वह इतना अप्रतिम है कि मैं अपनी भावनाओं को शब्द नहीं दे पा रहा हूँ। 


मेरे जीवन में सदा ख़ुशियाँ आती रही हैं। कई बार तो विश्वास नहीं होता कि मैं इतना ख़ुशक़िस्मत क्यों हूँ?


मैंने आज तक किसी मन्दिर में कोई दान नहीं दिया है। दान पेटिका साफ़ दिखाई देती है। पर मैं नहीं देता। 


मम्मी ने सैलाना में मन्दिर बनवाया उसमें भी नहीं दिया। वैष्णोदेवी, तिरूपति, महाकाल, कामाख्या, कालीघाट, दक्षिणेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, सिद्धिविनायक, मुम्बादेवी, काशी विश्वनाथ, अक्षरधाम, शंकराचार्य आदि कई प्रसिद्ध मन्दिरों में जा चुका हूँ। कहीं कभी कोई दान नहीं। 


जब कोई घर पर नल ठीक करने, या सामान डिलीवर करने आते हैं मैं उन्हें उनकी सेवा की पूरी राशि दे देता हूँ। जब किसी टैक्सी, ऑटो, टेम्पो से कहीं जाता हूँ तो पूरा भुगतान करता हूँ। 


जब कोई मुझे कोई सेवा प्रदान करता है, कुछ देता है, उसके बदले में यदि थोड़ा अधिक दे भी दिया तो मैं ठगा नहीं महसूस करता हूँ। मुझे स्वयं नहीं पता कि नल ठीक करने का या कार सही करने का सही मेहनताना क्या होगा। इसलिए कुछ ज़्यादा दे भी दिए तो कोई दुख की बात नहीं है। 


दान भी नहीं दिया फिर मुझ पर इतनी नेमत क्यों बरसती है? कोई कहता है मम्मी की पूजा-पाठ और दान-पुण्य का असर है। कई बार मुझे लगता है कि यह मेरी माटी का असर है जो कलकत्ता और बनारस के परिवेश में पकी। इन दोनों जगह पर महान विभूतियाँ रही हैं। यहाँ उन्होंने सृजन किया है। और मैंने इन दोनों शहरों में बहुत पैदल भ्रमण किया है। इनकी धूल-मिट्टी ऐसी लिपटी कदमों से कि सुख की छत्रछाया सदा साथ रही। 


अब मुझे लगता है कि मेरी ख़ुशहाली में मेरे पाठकों के प्रेम का भी योगदान है। और मज़े की बात यह भी है कि मेरी सारी रचनाओं से या उनमें व्यक्त विचारों से या दृष्टिकोण से उनकी सहमति भी नहीं है। लेकिन फिर भी प्रेम है, सद्भाव है, प्यार है। 


आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न न होते हुए भी इन्होंने अपने मन से मेरी, मेरी पत्नी, मेरे दोनों बेटों, और मेरी माँ की ओर से मन्दिर निर्माण के लिए धन राशि दान की। 


यह घटना सिर्फ़ वास्तविक जीवन में हो सकती है। इसकी कल्पना कोई कथाकार नहीं कर सकता। 


राहुल उपाध्याय । 27 फ़रवरी 2021 । सिएटल 

No comments: