Friday, February 12, 2021

31 जनवरी 2021

31 जनवरी का रविवारीय भ्रमण व्यूपाईंट पार्क के इर्द-गिर्द हुआ। वहाँ पार्किंग सीमित है इसलिए पास के चर्च में गाड़ियाँ पार्क कीं। यहाँ हर मोहल्ले में कई चर्च हैं। और हर चर्च के पास प्रचुर मात्रा में पार्किंग है। 


इसलिए चर्च के पार्किंग लॉट का इस्तेमाल अन्य संस्थाएं भी यदाकदा करती हैं। जैसे कि फ़ेसबुक-गूगल आदि अपने कर्मचारियों को ऑफ़िस तक लाने के लिए जो बसें चलाते हैं वे सब चर्च से ही यात्री उठातीं हैं। 


अमेरिका भारत से तीन गुना बड़ा देश है क्षेत्रफल में। और आबादी में तीन गुना कम। इसलिए लोगों के आवास के बीच दूरियाँ बहुत है। बस लोगों को लेने के लिए उनके घर नहीं जा सकती। इसलिए बस में जाने के लिए भी कार आवश्यक होती है। पहले कार से आप पड़ोस के चर्च में जाइए। वहाँ अपनी गाड़ी पार्क करें। वही से आपको अपनी कंपनी की बस मिल जाएगी और फिर शाम को वही बस आपको इसी पार्किंग लॉट में छोड़ देगी। आप अपनी कार लेकर फिर घर जाएँ। 


चर्च का पार्किंग लॉट चर्च के लिए सिर्फ़ रविवार को काम में आता है।  रविवार के दिन सुबह दस बजे से चर्च की सर्विस शुरू हो जाती है। इन दिनों वे कम मात्रा में हो रहीं हैं। पहले तो बंद ही था कोविड के चक्कर में। अब चर्च खुल गए हैं और लोग कम मात्रा में आ रहे हैं। 


ईसाई सम्प्रदाय भी कई गुटों में बँटा हुआ है। हर गुट के अपने चर्च हैं। और उनके हिसाब से वहाँ काम-काज होता है। पर सब में समानताएँ भी हैं। हर चर्च ईसा मसीह का संदेश अपने भक्तों को सुनाता हैं। और समाज सेवा में जुटा रहता है। यहाँ भी गरीबों को मुफ़्त में खाना दिया जाता है। पका हुआ नहीं  खिलाया जाता। सामान बैग में देते हैं ताकि वो अपने घर जाकर दो-तीन दिन तक सपरिवार खा सकें। जैसे ब्रेड का पूरा पैकेट, जाम की शीशी, साबुत टमाटर-फल, कैन में पेक्ड सब्ज़ियाँ - जैसे मटर,पालक, फली आदि - जो कभी ख़राब नहीं होतीं और फ़्रीज़ में नहीं रखनी पड़तीं हैं। 


शादियाँ चर्च में भी होती हैं। और कहीं भी हो सकतीं हैं। घर पर भी की जा सकती हैं। 'बीच' पर या नदी किनारे भी। कहीं भी। कोई बंधन नहीं है। 


पादरी की भी आवश्यकता नहीं है। कोई भी लाइसेंस ले सकता है शादी करवाने का। दो गवाहों की आवश्यकता होती है। बस। 


शादी की ज़िम्मेदारी माँ-बाप पर नहीं होती है। लड़का-लड़की स्वयं एक-दूसरे को जानने-समझने और कई बार तो साथ रहने के बाद तय करते हैं कि अब हम शादी कर लेते हैं। वे ही निमंत्रण भेजते हैं। माता-पिता नहीं। कार्ड में लिखा रहता है कि शादी में हमें क्या उपहार चाहिए। इसकी सूची एक दुकान पर दे दी गई है। आपको जो पसन्द हो, आप उसके पैसे दे दीजिए। जैसे कि फ़ूड प्रॉसेसर, साईकिल, पर्दे, स्टील के बर्तन, डिनर सेट, चादर, रज़ाई, कम्बल आदि। अगर आप फ़ूड प्रॉसेसर के आधे पैसे ही दे सकते हैं तो वह भी ठीक है। 


चर्च की शादी में सूट-बूट में सज-धज कर जाया जाता है। 1987 में अमेरिका आए मुझे एक साल हुआ था। और एक अमेरिकन की चर्च की शादी का न्यौता आया। सूट नहीं था। ख़रीदा। चमड़े के काले जूते नहीं थे। ख़रीदे। 


छात्रवृत्ति में से सूट-बूट का ख़र्चा निकालने में बहुत कष्ट हुआ। ख़ैर वही सूट-बूट तीन साल बाद नौकरी के लिए इन्टरव्यू में काम आए। 


शादी में खाना होता है। पर हल्का-फुल्का। नाम मात्र का। पीने को पर्याप्त होता है। मैंने न खाया, न पीया। खाने में कोई भी व्यंजन पल्ले नहीं पड़ा। मीठे में भी सिर्फ केक। कोई गुलाब जामुन, गाजर का हलवा नहीं। 


शादी भारत में भी दो रूपये-नारियल में की जा सकती है। और अम्बानी की तरह भी। यहाँ भी कोर्ट में न्यूनतम खर्च में की जा सकती है। या फिर बाक़ायदा घोड़ी पर बैठकर बाजे-गाजे के साथ आलीशान पाँच सितारा होटल में की जा सकती है। या फिर किसी प्रसिद्ध गोल्फ कोर्स पर। कई-कई बार लोग साल-दो साल इंतज़ार करते हैं कि जब हमारा नम्बर आएगा तब हम फलानी जगह शादी करेंगे। तब तक साथ रहते हैं पति-पत्नी की तरह। बस शादी नहीं की होती है। कई बार दोनों मिलकर साल-दो साल धन जोड़ते हैं फिर शादी करते हैं। कई बार कुछ माता-पिता मदद भी कर देते हैं। 


राहुल उपाध्याय । 12 फ़रवरी 2021 । सिएटल 




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