होंठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो
यह ग़ज़ल नहीं है।
इस रचना की सारी पंक्तियाँ नीचे हैं। आप देख लें। हर पद में दो ही पंक्तियाँ होनी चाहिए। न कम, न ज़्यादा।
मुखड़े से आभास होता है कि ग़ज़ल है। क्योंकि दो पंक्तियाँ हैं, रदीफ है (अमर कर दो), और क़ाफ़िया (गीत/प्रीत) है।
रदीफ (अमर कर दो) और क़ाफ़िया (रीत/जीत/संगीत) हर पद में भी है। लेकिन ये दो पंक्तियों के पद नहीं हैं। हर पद में तीन पंक्तियाँ हैं।
होंठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो (पंक्ति #1)
बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो (पंक्ति #2)
न उम्र की सीमा हो
न जन्म का हो बंधन (पंक्ति #1)
जब प्यार करे कोई
तो देखे केवल मन (पंक्ति #2)
नई रीत चलाकर तुम
ये रीत अमर कर दो (पंक्ति #3)
जग ने छीना मुझसे
मुझे जो भी लगा प्यारा (पंक्ति #1)
सब जीता किये मुझसे
मैं हर दम ही हारा (पंक्ति #2)
तुम हार के दिल अपना
मेरी जीत अमर कर दो (पंक्ति #3)
आकाश का सूनापन
मेरे तनहा मन में (पंक्ति #1)
पायल छनकाती तुम
आजाओ जीवन में (पंक्ति #2)
साँसें देकर अपनी
संगीत अमर कर दो (पंक्ति #3)
अब काजल फ़िल्म की इस रचना को देखें। यह ग़ज़ल है।
देखने में पहली दो पंक्तियाँ चार लग सकतीं हैं। लेकिन वे दो ही हैं। रदीफ (है ये), क़ाफ़िया (जाम/ईनाम) भी है।
बाक़ी पद में भी वहीं रदीफ है। क़ाफ़िया (पैग़ाम/बदनाम) है। और दो पंक्तियों के पद हैं।
छू लेने दो नाज़ुक होठों को
कुछ और नहीं है जाम है ये (पंक्ति #1)
क़ुदरत ने जो हमको बख़्शा है
वो सबसे हसीं ईनाम है ये (पंक्ति #2)
शरमा के न यूँ ही खो देना
रंगीन जवानी की घड़ियाँ (पंक्ति #1)
बेताब धड़कते सीनों का
अरमान भरा पैगाम है ये (पंक्ति #2)
अच्छों को बुरा साबित करना
दुनिया की पुरानी आदत है (पंक्ति #1)
इस मय को मुबारक चीज़ समझ
माना की बहुत बदनाम है ये (पंक्ति #2)
इस रचना का मैंने प्रतिगीत लिखा था। जिसे आप उमेश की आवाज़ में यहाँ सुन सकते हैं:
राहुल उपाध्याय । 4 फ़रवरी 2021 । सिएटल
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