Thursday, January 28, 2021

17 जनवरी 2021

17 जनवरी का रविवारीय भ्रमण सिएटल के मुख्य क्षेत्र में स्थित कैरी पार्क और स्पेस नीडल के आसपास हुआ। जैसे कि आगरा का ताजमहल और सिडनी का ऑपेरा हाऊस इन शहरों की पहचान है, वैसे ही स्पेस नीडल सिएटल की पहचान है। यह 605 फ़ीट ऊँची है। इससे ऊँची कई इमारतें हैं। लेकिन जब यह निर्मित हुई तब यह पूरे इलाक़े की सबसे ऊँची इमारत थी। इसकी उम्र और मेरी उम्र एक ही है। और देखा जाए तो नए अमेरिका और मेरी उम्र भी एक ही है। 


कई बार तो मैं सोचता हूँ कि शायद जॉन एफ कैनेडी की आत्मा ने मेरा शरीर धारण कर लिया है। वे 23 नवम्बर 1963 को गुज़रे। मैं 26 नवम्बर 1963 को आया। दो-तीन दिन तो लगते ही होंगे पुराने लिबास उतार कर नया पहनने में। 


कई मामलों में मैं ग़रीबी में पला। पर उस माहौल में भी मेरा विशिष्ट जीवन रहा। बचपन में मैं बहुत कमज़ोर था। सो डॉक्टर ने कहा दो चम्मच फेरिडॉल खिलाओ सुबह शाम दूध के साथ। सो मैं एकमात्र बच्चा था जो दूध पीता था। बाक़ी सारे पन्द्रह सदस्य चाय पीते थे। मैंने तब नहीं पी तो फिर कभी नहीं पी। शायद यही वजह रही कि मुझे किसी की भी तलब नहीं है। कोई व्यसन नहीं। पान-बीड़ी-सिगरेट-गुटका-चॉकलेट-कॉफी-कोक किसी की लत नहीं। बनारस चार साल रहा बी-टेक के दौरान। कभी पान नहीं खाया। सिएटल स्टारबक्स का मक्का-मदीना है। कभी कॉफी नहीं पी। 


बालों में एक-दो बार छोड़ कभी तेल नहीं लगाया। ननिहाल में तालाब की काली-गीली मिट्टी से घर के कुएँ पर बाल्टी भर-भर बाक़ी सात बच्चों के साथ बाल धोए हैं। बाद में धूप में नारियल का तेल पिघला कर एक-दो बार लगाया है। लेकिन फिर 1970 में बाऊजी लंदन से पी-एच-डी कर लौटे तो शैम्पू से परिचय हुआ। उनका कहना था कि शैम्पू से बाल धो लो तो तेल नहीं लगाते हैं। और तेल न लगाने से तकियों के कवर गन्दे भी नहीं होते थे। बस मैंने वही रीत अपना ली। 


पाँचवीं कक्षा मेरठ के कॉन्वेंट स्कूल में हुई। 101 साकेत हमारा पता था। वहाँ पहली बार शॉवर से नहाया। (तब से मुझे बाल्टी से नहाने में संतुष्टि नहीं मिलती है। बनारस में भी चार डिग्री सेंटिग्रेड की ठंड में नल के नीचे बैठकर नहाया।) पहली बार वाश बेसिन में हाथ धोएँ। शीशे के सामने खड़े होकर मंजन किया। 


सैलाना में दासाब (नाना) का स्कूल पाँचवीं तक का था। वहाँ ए-बी-सी-डी भी नहीं सिखाई जाती थी। मैं चौथी तक वहाँ पढ़ा। और पाँचवीं मेरठ के इस प्राइमरी स्कूल में जिसका पढ़ाई का माध्यम ही अंग्रेज़ी था। और चूँकि हमारी सबसे सीनियर क्लास थी सो चौथी वाले फ़ेयरवेल दे रहे थे। मेरे लिए ये सब एक मेले जैसे था। सब अजूबा लग रहे थे। जैसे मेले में मौत का कुआँ, गोली मारकर ग़ुब्बारे फोड़ना आदि होता है। वैसी ही यहाँ की अजीब सी हरकतें। फ़ेयरवेल के लिए रंगारंग कार्यक्रम हुआ। लड़कियों ने नृत्य प्रस्तुत किए। अदिति ने 'इन्हीं लोगों ने' पर सज-धज कर नृत्य प्रस्तुत किया। स्मरण पत्र भी दिया। 


स्कूल के सामने चाट वाला खोंमचे लगाता था। सैलाना में दासाब की सख़्त हिदायत थी कि बाहर का खाना कभी नहीं खाना है। चाहे मुफ्त में ही क्यों न हो। इसलिए मुझे कभी जेब ख़र्च नहीं मिला। और मैं इस आदत से भी बचा रहा। 


मेरठ से दिल्ली पास है। स्कूल की ओर से चिड़ियाघर देखने गए। माली भी साथ चला। वहाँ शेर माँस खा रहा था। माली यह देखकर बेहोश हो गया। 


दिल्ली में एशिया 72 की भव्य प्रदर्शनी हुई। तभी प्रगति मैदान बना। वहाँ पहली बार खुद को टीवी पर देखा। जैसे ही पवेलियन में घुसा, देखा टीवी पर मैं हूँ। वह भी चलता-फिरता। तब तक टीवी ही नहीं देखा था। बहुत अचम्भा हुआ। तब समझाया गया कि दरवाज़े पर ही कैमरा लगा हुआ है जिससे जो हो रहा है सब टीवी पर दिख जाता है। आज की भाषा में सी-सी-टीवी। जो कि आम बात है। 


छठी कक्षा के लिए वापस हिन्दी में पढ़ाई। रतलाम के जैन स्कूल में। यहाँ मैं अंधे में काणा राजा। अंग्रेज़ी के अध्यापक गौढ़ साहब अत्यधिक ख़ुश। वे विषय रोचक बनवाने के लिए हम सबसे किसी न किसी पात्र के रूप में पाठ करवाते थे। मुझे हमेशा जॉन बनाया। शैम्पू लगाने से बिना तेल के बाल ऐसे खिलते रहते थे कि सब मुझे फॉरेनर कह कर चिढ़ाते थे। 


मैं जब सिनसिनाटी में एम-बी-ए कर रहा था, एक दोस्त के साथ कार से डॉलास गया था। उस पुस्तकालय के पास भी गया जहाँ कैनेडी की हत्या हुई थी। मैं सोच रहा था कि हिन्दी फ़िल्मों की तरह मेरी आत्मा शायद वह स्थान पहचान ले और घटनाक्रम कुछ बदले। लेकिन कुछ नहीं हुआ। 


राहुल उपाध्याय । 28 जनवरी 2021 । सिएटल 



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