10 जनवरी 2021 का भ्रमण स्क्वॉक पर्वत के सामने बसी सोसायटी के इर्द-गिर्द हुआ।
यहाँ पहुँचते ही 'शोले' के रामगढ़ की याद आ जाती है। खुला वातावरण। लम्बे-चौड़े दालान। घोड़ों के अस्तबल। घोड़ों के दौड़ने के लिए पर्याप्त ज़मीन एवं इंतज़ाम।
फ़र्क़ यह कि यह आधुनिक रामगढ़ है। सारी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न विशालकाय घर।
मौसम भी सुहाना रहा। न ज़्यादा ठंड। न बारिश।
और यह शहर से जुड़ा, शहर का ही अंग है। बिजली/पानी तो है ही, स्कूल बस भी आती है।
हर रविवार कहाँ जाना है, इसकी ज़िम्मेदारी मेरी है। नौ बजे तक सबको वापस गाड़ी तक पहुँचाना भी।
उसी तरह वैभव ने ज़िम्मेदारी ले रखी है सबको गर्मागर्म मज़ेदार अद्रक वाली चाय लाने की। चूँकि मैं चाय नहीं पीता तो करूण ने ज़िम्मेदारी ले रखी है मेरे लिए ग्रीन टी लाने की। अनारदाने वाली चाय मुझे पसंद है जो उसे किसी यात्रा के दौरान होटल में मिली थी। अब वे ख़त्म होने को थी। सो चिंतित था। बहुत खोजबीन की। भ्रमण के बाद उसने स्थानीय दुकान, फ़्रेड मायर, से ही चाय के डब्बे का फ़ोटो भेजा कि वो उसे मिल गई। इतना ख़ुश मानो आर्कमिडीज़ को सिद्धांत मिल गया हो।
मैं ज़्यादा ख़ुश कि कोई किसी के लिए इतना कैसे कर सकता है!
इसी सप्ताह, एक साल पहले पहले, मम्मी का ग्रीन कार्ड आया था। तब भी सिर्फ़ एक को छोड़ कर कोई भी सगा-सम्बन्धी नहीं था जिन्होंने मेरी मदद की।
उसी दिन शाम को हरमीत से मिलने गया। चूँकि मैं सिर्फ़ सब्ज़ियाँ खाता हूँ, मुझे खीरा और अवाकाडो काट कर दिया। जिसे मैं काँटे से खा रहा था। उसकी बेटी मेरे पास आई और मुझे प्यार से उसी काँटे से खिलाने लगी। उसकी माँ को अच्छा लगा, और उसने यह अविस्मरणीय एवं नायाब वीडियो बना के मुझे भेजा।
जब अपने नहीं होते हैं, सब अपने होते हैं।
राहुल उपाध्याय । 16 जनवरी 2021 । सिएटल
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