Sunday, January 10, 2021

3 जनवरी 2021

3 जनवरी का रविवारीय प्रात: भ्रमण मर्सर द्वीप पर हुआ। मैंने जहाँ की योजना बनायी थी वहाँ भ्रमण नहीं हो सका। पहली बार गूगल मैप्स ने धोखा दिया। जिस स्थान पर हम पहुँचे, वहाँ पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं थी।  वहाँ सिर्फ़ चार-पाँच घर थे। कहीं से कोई रास्ता नहीं था जहाँ से भ्रमण किया जा सके। आनन फ़ानन में एक नई जगह चुनी गई और वहाँ भी निराशा हाथ लगी। वो सरकारी स्थल था।  जहाँ पर पार्किंग की अनुमति नहीं थी।  वहाँ से फिर तीसरे स्थान पर गए। वहाँ घूमने की जगह ज़्यादा नहीं थी। छोटा सा पार्क था। लेकिन मनोरम स्थल था। इस भागा-भागी में ज़्यादा भ्रमण इस बार नहीं हो पाया। 

मर्सर द्वीप का इतिहास अनोखा है।  राष्ट्रपति ओबामा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यहीं प्राप्त की। यहाँ के अधिकतर घरों से पानी का नज़ारा दिखता है। और जहाँ से पानी का नज़ारा दिखे, वे घर बहुत महंगे होते हैं। ज़ाहिर है यहाँ भी ज़्यादातर घर बहुत महंगे हैं। इसी द्वीप पर माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक स्वर्गीय पॉल एलन भी रहा करते थे। पॉल एलन और बिल गेट्स ने मिलकर माइक्रोसॉफ्ट कंपनी खोली थी। वैसे तो पॉल ने ही बिल को कहा था कंपनी खोलने के लिए। वरना बिल तो पढ़ाई में व्यस्त थे। पॉल ने ही उनको ज़ोर देकर कहा कि कम्पनी अभी नहीं खुली तो बहुत देर हो जाएगी। 

पॉल और बिल के संबंध खट्टे-मीठे रहे।  पॉल ने अपनी आत्मकथा में इनका ज़िक्र किया है। पॉल ने बहुत जल्द ही कंपनी छोड़ दी। लेकिन चूंकि वे सह-संस्थापक थे सो उनके पास काफ़ी शेयर थे। इसलिए बाद में उन्होंने अन्य कंपनियां भी खोली और यहाँ की 2 टीम भी उन्होंने ख़रीद ली। एक फ़ुटबॉल की और एक बास्केटबॉल की। 

माइक्रोसॉफ्ट के शेयर्स की वजह से कई लोग रातों रात मालामाल हो गए। कुछ तो इतने मालामाल कि इन लोगों के पास अपने निजी हवाई जहाज़ है। एक बार शुक्रवार की दोपहर किसी ने एक ईमेल भेजी। मौसम अच्छा है मैं अपना प्लेन उड़ाना चाहता हूँ। क्या कोई साथ आएगा। मैं चला गया। 

उनके प्लेन में दो कंट्रोल्स थे। यानी दो व्यक्ति उसे उड़ा सकते थे। उस दिन बहूत रोमांच हुआ। वैसे तो मैं कई हवाई जहाज़ में बैठ चुका था। लेकिन इस छोटे से प्लेन में बैठने की बात ही अलग थी। इतना शोर शराबा होता है कि एक दूसरे की बात सुनने के लिए भी हेडफ़ोन लगाना होता है। उड़ने के बाद हमने सोचा कहाँ जाएँ, क्या करें। पास के एक छोटे एयरपोर्ट पर जाकर सैंडविच खाना तय हुआ। लेकिन बदक़िस्मती से दुकान बंद थी। हम बिना कुछ खाए-पिए वापस उड़ान भरकर इधर आ गये। 

लौटते वक़्त उन्होंने कहा तुम भी उड़ाना चाहोगे? मैंने कहा मुझे तो आता नहीं है। उन्होंने कहा कोई बात नहीं मैं सिखा देता हूँ। उन्होंने मुझे दो-चार चीज़ें सिखायी और फिर मैंने प्लेन को थोड़ा बहुत कंट्रोल करने का प्रयास किया। 

अविस्मरणीय दिन!

आज भी सोचता हूँ तो वह एक सपना ही लगता है। उसके बाद मैं उनसे कभी नहीं मिला। तब (2006) कैमरे भी पुराने ज़माने के थे। स्मार्टफ़ोन नहीं थे। उन्होंने मेरा फ़ोटो लिया और वह फ़ोटो प्रिंट करवा कर इन्टरऑफिस मेल से भेजा भी। कहीं रखा है। हाथ आया तो स्कैन कर साझा करूँगा। 

प्लेन की रख-रखाव और देखभाल भी खर्चीली होती है। साथ ही बीमा भी। ईंधन और पार्किंग अलग। 

इतने ख़र्च होने के बावजूद हमने उस दिन किसी ख़ास काम के लिए उड़ान नहीं भरी। यूँ ही तफ़री के लिए। 

कई बार लगता है कि मैंने इस छोटे से जीवन में कितना कुछ देख लिया।  कहाँ वो नंगे पाँव शिवगढ़ में लोटा लेकर जंगल जाना। और कहाँ सिएटल में प्लेन उड़ाना। 

राहुल उपाध्याय । 10 जनवरी 2021 । सिएटल


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