Friday, October 27, 2023

अच्छा साहित्य

अच्छा साहित्य वही होता है जिसमें अविश्वसनीय बातें भी विश्वसनीय लगती हैं। तब ही वह कालजयी बनता है। 'दीवार' हमें विश्वसनीय लगती है, मनमोहन देसाई की अमर-अकबर-एंथोनी टाइप नहीं कि अस्पताल में चार पलंग लगे हैं और तीन इंसानों से खून निकल कर सीधे चौथे इंसान में जा रहा है। जबकि 'दीवार' भी एक काल्पनिक कहानी ही है एक यूनियन लीडर की जो एक फ़ोटो देखकर डर जाता है। घर छोड़ देता है। दो बेटों में से एक पुलिस अफ़सर और दूसरा स्मगलर बन जाता है। और सारे पुलिस विभाग में सिर्फ़ एक भाई ही है जो भाई को गिरफ़्तार करेगा। और वह भाई भी 786 संख्या के बिल्ले की वजह से एक बार बच जाता है। बिल्ला न हुआ बुलेट प्रूफ़ जैकेट हो गया। 


आनन्द जिसे देखकर हर कोई रो पड़ता है वह भी गौर से देखें तो एक काल्पनिक कहानी ही है। कोई भी इंसान बिना अपने आगे-पीछे के नहीं होता। न बाबू मोशाय का कोई है। न आनन्द का। वाह! 


इसी तरह रामचरितमानस भी अच्छा साहित्य है। ज़्यादा दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं है कि कब, कौन, कहाँ, कैसे पैदा हुआ, कब मिला, कब बिछुड़ा, कब किस किस से क्या बात हुई। मनमोहन देसाई कहते थे कि सिनेमा देखना है तो दिमाग़ घर पर रख कर आईए। 


रामचरितमानस में इतने प्रसंग ऐसे हैं कि न सर है, न पैर। कभी राम लाचार हैं तो कभी सारे संसार के स्वामी हैं। अब हर साल नए-नए कथावाचक उभर कर आ जाते हैं जो हर तर्क को काटने को तैयार रहते हैं। कहते हैं राम नहीं चाहते कि सब कुछ वे करें। वे हनुमान का भी नाम रोशन करना चाहते हैं। लक्ष्मण का भी। सबका। यह कोई वन-मैन शो नहीं है। लेकिन अंततः नाम तो रामचरितमानस ही है। 


खैर। अब समुद्र पार करने का ही प्रसंग ले लीजिए। पहले तो विभीषण की बात मान कर प्रार्थना की समुद्र से। कुछ असर नहीं हुआ तो बाण द्वारा समुद्र सोख रहे थे। ये कैसे सम्भव है? क्या यह कोई साधारण मानव है जो समुद्र सोख सकता है। समुद्र से बात करता है? ऐसा इंसान यदि वनवास सहर्ष स्वीकार करता है तो कौनसा बड़ा काम कर रहा है। वह तो उसके बाएँ हाथ का खेल है। और वह तो जानता ही है कि उसका जन्म ही रावण का वध करने के लिए हुआ है। वह तो चाहेगा ही कि उसे वनवास मिले। 


और अब तक तो वानर और रीछ इंसान की भाँति चल-बोल रहे थे, विवाह रचा रहे थे। अब समुद्र भी चलने-बोलने लगा। और माना कि नल और नील बचपन में शरारती थे और वे हर चीज़ को पानी में डाल देते थे जिससे उनके माता-पिता परेशान थे कि चीजें मिलती ही नहीं थी। तब उन्हें श्राप मिला था कि जो भी फेंकेंगे तैरेगा, डूबेगा नहीं। तो ठीक है पत्थर तैरेंगे। पर जुड़े कैसे रहेंगे? रस्सी से बांधा उन्हें? सीमेंट लगाई? ऐसे ही पुल बन गया?


जटायु पक्षी हैं लेकिन बात करते हैं। बता देते हैं कि रावण ने सीता का अपहरण कर लिया है। पर नहीं, राम अभी हनुमान-सुग्रीव से मिलेंगे। (जैसा कि फ़िल्मों में होता है। क्लाईमेक्स तक हीरो विलैन को नहीं मारता है चाहे कितने ही मौक़े क्यों न मिल जाए) बालि का वध करेंगे। वह भी छुप कर। क्योंकि बालि को वरदान है कि प्रतिद्वंद्वी की आधी शक्ति उसे मिल जाएगी। उसके बाद भी चतुर्मास में आराम करेंगे। रावण से युद्ध तब तक नहीं हो सकता जब तक देवता सो रहे हों। 


सीता को मुक्त कराने की कोई जल्दी नहीं है। क्योंकि असली सीता तो अग्नि में छुपी बैठी हैं। जिसे अपहृत किया गया है वह तो सीता की प्रतिमूर्ति है। कम प्रबुद्ध पाठक नाहक परेशान होते हैं कि उन्हें सीता की कोई परवाह नहीं है। और अग्निपरीक्षा भी एक चाल थी असली सीता को आग से बाहर निकालने की। वे असली सीता को आग में नहीं धकेल रहे थे। वे तो दुनिया की आँख में धूल झोंक रहे थे। आई बात समझ में? यह सब लक्ष्मण को भी पता नहीं था। 


वनवास लेते समय शस्त्र साथ लेकर क्यों चले? कितने बाण लेकर चलें? एक धनुष कितने साल चल जाता होगा? और सारे आभूषण उतार दिए या कुछ रह गए? तो फिर केवट को देने के लिए अँगूठी कहाँ से आ गई? बाद में राम के पास एक और अँगूठी कहाँ से आ गई जो उन्होंने हनुमान जी को दी सीता की पुष्टि के लिए। और जब सीता सब अयोध्या में उतार ही चुकी थी तो अपहरण के वक्त पुष्पक से फेंकने के लिए गहने कहाँ से आए? और इतने गहने फेंक देने के बाद चूड़ामणि कैसे बच गया जो उन्होंने हनुमान जी को अशोक वन में दिया अपनी पहचान के रूप में राम के लिए?


जब लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं तब राम काम नहीं आते हैं। पहले वैद्य सुषेण चाहिए। फिर संजीवनी। और वह भी सूर्योदय से पहले। और ऐसे में ही सौ बाधाएँ आती हैं। पहले कालनेमि से जान छुड़ाओ। फिर संजीवनी पहचानो। फिर पूरा पहाड़ ही उठा लो। अब समस्या यह कि रास्ते में अयोध्या पड़ता है। भरत हनुमान जी को दानव समझ लेते है। इतना बड़ा पहाड़ आख़िर कौन उड़ा को ले जा सकता है। उन्हें तीर मारते हैं। अब हनुमान धरा पर घायल बैठे हैं। उधर समय निकला जा रहा है। सोचिए अंजनी पुत्र इतने शक्तिशाली होते हुए सुग्रीव को बालि से नहीं बचा पाते हैं। भरत के तीर से घायल हो जाते हैं। राम को पहचान नहीं पाते हैं। ये कौनसी लीला कर रहे हैं? अब भरत इन्हें एक तीर पर बिठा कर लंका भेजते हैं ताकि शीघ्र पहुँच जाए। ख़ुद नहीं जाते हैं कि देखूँ दोनों भाई किस संकट में हैं। और सीता भाभी की कोई चिंता नहीं?


इतनी गुत्थियाँ हैं कि कहाँ तक सुलझाई जाए। 


तीन पत्नियाँ एक ही दिन एक ही खीर खा कर गर्भवती होती हैं। एक ही दिन चार भाइयों का जन्म होता है। एक ही दिन सबकी शादी होती है। सबके पुत्र भी चौदह साल बाद ही होते हैं। और सबको दो-दो पुत्र होते हैं। 


राम के राज्याभिषेक की ज़ोर-शोर से तैयारी हो रही है और भरत राज्य में ही नहीं है। ये कैसे हो गया? क्या उनके रहते राम का राज्याभिषेक नहीं हो पाता?


जैसा कि मनमोहन देसाई ने कहा - दिमाग़ नहीं लगाना है। मतलब की बात ग्रहण करनी है। बुराई पर अच्छाई की विजय होती है। बेटे को पिता का वचन निभाना है। भाई को भाई से प्यार करना चाहिए। आदि आदि। 


जैसे ख़रगोश-कछुए की कहानी है। सुनने से पहले ही आप टोक दोगे कि ये क्या चल रहा है? ख़रगोश और कछुए एक दूसरे से बात कर रहे हैं? ये कब और कहाँ हुआ? फिर तो आप आवश्यक शिक्षा से वंचित रह जाओगे कि काम करते रहने से ही सफलता मिलती है। चाहे कछुए की चाल से ही क्यों न करो। 


राहुल उपाध्याय । 27 अक्टूबर 2023 । क्राबी (थाइलैंड)










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