Saturday, October 21, 2023

खुफिया- एक समीक्षा

खुफिया एक थ्रिलर मूवी है। शुरू से ही रहस्यमयी घटनाएँ होती रहती हैं। कुछ मौजूदा समय में। कुछ अतीत में। कई बार उन्हें एक दूसरे से अलग करना मुश्किल हो जाता है। 


यह विशाल भारद्वाज की फ़िल्म है और नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है। 


विशाल भारद्वाज अलग तरह की फ़िल्में बनाते है। राहुल देव बर्मन के गुज़र जाने के बाद गुलज़ार की रचनाएँ को अधिकतर विशाल ने ही संगीत में पिरोया है। उनकी पत्नी रेखा भारद्वाज एक अच्छी गायिका हैं और अक्सर उनकी फ़िल्मों के गीत गाती हैं। 


विशाल को शेक्सपियर के नाटक भी प्रिय हैं और उन पर आधारित फ़िल्में भी बनाई है। जैसे कि औंकारा (ओथेलो), मक़बूल (मैक्बेथ), हैदर (हैमलेट)। 


खुफिया 2004 के आसपास की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है और भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश-अमेरिका की राजनीति से ओतप्रोत है। इसमें कई और पहलू भी जोड़ दिए गए हैं जो कि घिसे-पीटे हैं। माँ का बेटे के प्रति हद से ज़्यादा लगाव। बेटे का माँ से अलगाव। बेटे का माँ के प्रति स्नेह। पति-पत्नी की तलाक़ के बाद की दोस्ती। काम की व्यस्तता से परिवार का उपेक्षित महसूस करना। समलैंगिक रिश्ते। बेटी का पिता के कैंसर का इलाज कराना। अमेरिका सोने की खान है पर गुलाब की सेज नहीं। संभ्रांत दिल्ली के गुरुओं की सच्चाई। आदि। 


इतने पहलू एक साथ होने से कई बार फ़िल्म खींच दी गई लगती है। हिचकॉक को भी माथा टेका गया है। क्लाईमेक्स में हास्यास्पद सीन अटपटा लगा। 


पर कुल मिलाकर घर बैठकर देखने लायक़ अच्छी फिल्म लगी। बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही बढ़िया है। ख़ासकर व्हीस्लिंग वाला। 


खुफिया एजेंसी के खुफिया तरीक़े फ़िल्मी हैं। रीयल लाईफ़ में शायद ऐसा नहीं है। 


तबू और वामिका का अभिनय शानदार है। नवीन्द्रा बहल की अदायगी ओवर द टॉप है पर बहुत ही विश्वसनीय है। राहुल राम एक बहुत ही अच्छे कलाकार है। लग ही नहीं रहा था कि वे एक गुरू का किरदार निभा रहे हैं। 


गीत गुलज़ार के हैं लेकिन कोई असर नहीं छोड़ते। 


फरहाद अहमद दहेलवी की सिनेमेटोग्राफ़ी बहुत ही बढ़िया है। ख़ासकर कनाडा के सीन बहुत ही सुन्दर है। फिल्म में उन्हें अमेरिका बताया गया है। 


फ़िल्म की कहनी विशाल और रोहण नरूला ने लिखी है जो कि अमर भूषण के उपन्यास पर आधारित है। 


राहुल उपाध्याय । 22 अक्टूबर 2023 । सिंगापुर 



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