Sunday, October 8, 2023

दासाहब और उनका स्कूल

आरिफ मिर्ज़ा साहब का लेख

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🌹 यादें स्कूल की  🌹 त्रिवेदी स्कूल सैलाना (ज़िला रतलाम)

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इस पोस्ट के साथ जिस हस्ती की तस्वीर आप देख रहे हैं , ये मेरे प्रथम गुरु परम् श्रधेय स्व. लक्ष्मीनारायण त्रिवेदी हैं। 1963 में मेरे पिता स्व. अब्दुल समद बैग रतलाम से स्थानांतरित हो कर सैलाना तहसील में ब्लॉक डेवलोपमेन्ट ऑफीसर के पद पर आए थे । उन्हें बताया गया कि त्रिवेदी प्राथमिक विद्यालय बच्चों के लिए बहुत अच्छा रहेगा । तब मेरा पहली, बड़े भाई शाहिद मिर्ज़ा का तीसरी और छोटे भाई हाज़िक का कक्का में दाखिला होना था । 57 बरस पहले केजी को कक्का कहा जाता था । पिता ने चपरासी बगदीराम को हम तीनों भाइयों को त्रिवेदी विद्यालय में प्रवेश के लिए भेजा । निहायत ही सख्त मिजाज़ लक्ष्मीनारायण त्रिवेदी मास्साब ने बगदीराम से साफ कहा- तेरे बीडीओ साब को बता देना , बच्चों को सबक याद नहीं हुआ तो ये पिटेंगे । वो अपनी अफसरी दिखाने यहां नहीं आएं । बहरहाल हमारा दाखिला त्रिवेदी मास्साब के स्कूल में हो गया ।  मास्साब पक्के गांधीवादी थे । खादी के कलफ लगे कपड़े पहनते । किमाम की खुशबू वाला पान खाते । कपड़े की थैली में हम बाल भारती, सुंदर लेखन आदि की किताबें  और काले रंग की स्लेट और लिखने वाली पेम ले जाते । व्याकरण और शुद्ध लेखन पर मास्साब विशेष ध्यान देते । गणित में तो उन्हें महारत थी । दूसरी कक्षा के बच्चे को 20 तक और चौथी वाले को 40 तक पहाड़े कंठस्थ होना अनिवार्य था । तब मुझे अद्धा-पौना-सवैया का पहाड़ा भी याद था । शुद्ध लेखन के लिए मास्साब हमे राड़े का बर्रु बनाकर देते । स्याही की गोलियों को घोल कर हम दवात में भरते और बर्रु से लिखते । स्कूल में सुबह ' दया कर दान भक्ति का  मुझे परमात्मा देना ' प्रार्थना के बाद मास्साब ओटले पर अपना दायां पैर आगे कर खड़े हो जाते । बच्चे स्कूल में प्रवेश करते हुए मास्साब कें पैर छूते और कक्षा में टाट पट्टी पर बैठ जाते । मुस्लिम बच्चों को पैर न छूने की छूट थी । हर कक्षा के बच्चों को दिया जाने वाला होम वर्क मास्साब खुद चेक करते । क्लास मोनिटर बच्चों की कॉपियां मास्साब की टेबल पर रख देते । उनमे से सही उत्तर वाली किसी एक कॉपी को मास्साब जांच कर लाल स्याही से दस्तख्त कर देते । उस कॉपी के आधार पर  मोनिटर के साथ सीनियर क्लास के बच्चे बाकी बच्चों की कॉपियां जांचते । जिन बच्चों के उत्तर गलत होते उनकी कॉपी मास्साब की टेबल पर पहुंचा दी जातीं । फिर शुरू होती गलत उत्तर लिखने वालों की क्लास । मास्साब एक-एक शब्द को बीस-बीस बार लिखवाते । फिर भी जो सही नहीं लिख पाते उनकी अच्छी खासी कुटाई होती । जिन बच्चों को सबक याद नहीं होता उन्हें स्कूल की छुट्टि के बाद भी मास्साब घर नहीं जाने देते । मुझे याद है कि बच्चों के माता-पिता बाहर खड़े सुबकते रहते लेकिन त्रिवेदी मास्साब बच्के को तभी छोड़ते जब उसे सबक याद हो जाता । गुरुवार को लेखन और गुन्नी होती । गुन्नी यानी पहाड़े । दो-दो बच्चे खड़े होकर पहाड़े बोलते । उनके बोले पहाड़ों को पूरा स्कूल रिपीट करता ।  कई बार मास्साब खुश होने पर बच्चों को पिकनिक ले जाते । पिकनिक को जंगल जाना कहा जाता । जंगल जाते हुए बच्चों की प्रभात फेरी सैलाना की सड़कों पर पहाड़े बोलते हुए निकलती । तब सैलाना के कई व्यापारी ओटले वाली दुकान से उतर कर  मास्साब के चरण छूते । स्कूल भवन के पिछ्ले हिस्से में मास्साब रहते । वहां एक जामुन का पेड़ और एक कुआं हुआ करता था । बच्चों के माता पिता से मास्साब लिख कर मंगवाते थे कि बच्चा सुबह उठ कर नमस्का करता है या नही, कहना मानता है या नहीं । शिकायत मिलने पर बच्चे को मास्साब जीवन का पाठ पढ़ाते ।  महीने डेढ़ महीने में मास्साब किसी कोर्ट केस के सिलसिले में रतलाम जाते तब उनकी दस ग्यारह साल की बेटी हिन्दबाला स्कूल संभालतीं । तब बच्चों को खूब मस्ती करने का मौका मिल जाता । एक बार कोई बच्चा एक रुपये का कलदार सिक्का ले आया । मास्साब ने फ़ौरन उसके पिता को बुलाकर डांटा - बहुत बड़े आदमी हो गए हो...बच्चे को कलदार देके भेजोगे । आगे से ऐसा किया तो नाम काट दूंगा । मुझे आज भी 15 का वो पहाड़ा याद है- पंदरा कु पंदरा, दूना तीस, तरी पे ताला, चौका साठ, बने पिछोत्तर, छक्का नेउ, सते   पिचलन्तर, अन्ते बीसा, नमा पेंतीसा, डबल ढाई डेढ़ सौ ।  28 ओकटुबर 1989 को उनका निधन हुआ । उनकी पार्थिव देह को तिरंगे में ले जाया गया । उनके निधन पर सैलाना के बाजार बंद रहे । त्रिवेदी मास्साब का जन्म 1910 में सैलाना में हुआ था । जब वे 5 वर्ष के थे तब उनके पिता शालिग्रामजी का देहांत हो गया । माता रामी बाई ने इन्हें बहुत अभावों में पाला । मास्साब के बड़े भाई रामनारायण त्रिवेदी को उनके मामा ने गौद ले लिया था । उन्होंने अलीगढ से एलएलबी किया और पवई में मजिस्ट्रेट हो गए । बाद में आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने नोकरी छोड़ दी । उन्होंने मास्साब को भी आज़ादी की लड़ाई में अपने साथ जोड़ा । दोनों भाइयों ने सैलाना में प्रजा मंडल के तहत आज़ादी की लड़ाई लड़ी । भाई की प्रेरणा से ही मास्साब ने 1936 में इस त्रिवेदी प्राथमिक शाला की स्थापना की । 1940 में मास्साब ने पत्रकरिता में कदम रखा । उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के लिए काम किया । 1947 में आप नईदुनिया से जुड़े । इसकी ऐजेंसी भी ली । आज उनके पोते वीरेंद्र त्रिवेदी सैलाना में नईदुनिया का ब्यूरो देखते हैं । वे इस आदिवासी अंचल के पहले स्कूल संचालक थे । उनका स्कूल 2019 तक 83 वर्ष तक चला ।


मैं आज जो कुछ भी हूं परम श्रधेय लक्ष्मीनारायण त्रिवेदी मास्साब की दी हुई तालीम , पिटाई और संस्कारों के कारण हूं । पिछले दिनों सैलाना में रहे मेरे एफबी फ्रेंड Basant Upadhyay बसंत उपाध्याय जी से मुझे सैलाना के एक बुजुर्ग हेमशंकर अवस्थीजी का नंबर मिला। उन्हीने मुझे मास्साब के पोते वीरेंद्र त्रिवेदी का नंबर दिया । वीरेंद्रजी ने मास्साब के अमेरिका में बस गए और माइक्रोसॉफ्ट में बड़े ओहदे पर कार्यरत  मास्साब के नाती राहुल उपाध्याय से मेरा फोन पर संपर्क कराया । राहुल जी ने अमेरिका से त्रिवेदी मास्साब के ये फोटो मुझे भेजे । मास्साब आपको प्रणाम करता हूँ और तहेदिल से खिराजे अक़ीदत पेश करता हूं ।


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