Tuesday, May 16, 2023

द केरल स्टोरी - समीक्षा

द केरल स्टोरी - कोई स्टोरी नहीं है। कहानी नहीं है। सच्ची कहानियों पर आधारित एक फिल्म है जो कि फिल्म नहीं कही जा सकती है। यह कभी डाक्यूमेंटरी लगती है तो कभी नाटक तो कभी मज़ाक़। 


सच्ची घटनाएँ पर्दे पर रंग नहीं ला पाती हैं। उन्हें जीवंत करने के लिए किरदार जोड़े जाते हैं। उनका चरित्र तैयार किया जाता है। कसी हुई स्क्रिप्ट चाहिए। दमदार संवाद चाहिए। यही एक साहित्य, सिनेमा और कला की पहचान है। रामायण लिखने के लिए वाल्मीकि चाहिए। मानस लिखने के लिए तुलसीदास चाहिए। शोले के लिए सलीम-जावेद चाहिए। 


इस फिल्म की पूरी टीम बहुत कमजोर है। ऐसा लगता है जैसे कि हाई स्कूल के बच्चों ने बनाई हो। 


नाम केरल फ़ाइल्स भी हो सकता था। मैंने हिन्दी में देखी। लेकिन बीच-बीच में दूसरी भाषाएँ आती गईं। समझने में दिक़्क़त हुई। सबटाइटल पढ़ने पड़े। गीत भी पल्ले नहीं पड़े। 


फिल्म बनाने का मक़सद क्या है, समझ नहीं आया। मनोरंजन तो है नहीं। इस फिल्म की वजह से लड़कियाँ धर्मपरिवर्तन नहीं करेंगी ऐसा प्रतीत नहीं होता। धर्मपरिवर्तन का दायरा भी बहुत छोटा रखा गया। कोई पुरूष मुसलमान नहीं बनता है। पुरूष तो आतंकवाद में ज़्यादा कामयाब हो सकते हैं। उन्हें क्यों छोड़ दिया गया?


कश्मीर फाइल्स के मुक़ाबले इस फिल्म में कम हिंसा है, कम नफ़रत है। किंतु सेक्स ज़्यादा है। 


न देखें तो ही बेहतर है। कोई किताब पढ़ लें। 


राहुल उपाध्याय । 16 मई 2023 । सिएटल 





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