Tuesday, May 2, 2023

शिव शंकर मेहरा

शिव शंकर मेहरा

जन्म 25 दिसंबर 1945       

निधन 8 मार्च 2012


धामनोद वाले काकासाब का पूरा नाम शिवशंकर था। वे बाबूजी के मामा के बेटे थे। वे अपने पिता गोर्वधनलाल और माता नर्मदाबाई की इकलौती जीवित संतान थे। काकासाब का जन्म 25 दिसंबर 1945 को मध्यप्रदेश के धार जिले की बदनावर तहसील के किसी गांव में हुआ था जहां काकासाब के माता-पिता शिक्षक थे। काकासाब की माताजी नर्मदा बाई का उनके बचपन में ही कैंसर से निधन हो गया। तब हमारी दादी (जो काकासा की बुआ थी) उन्हें सैलाना ले आई। काकासाब ने प्राथमिक शिक्षा सैलाना में प्राप्त की। बाद में उनके पिता रतलाम ले गये। वे अपनी पत्नी के निधन के बाद रतलाम आ गये थे और बरवड़ हनुमान मंदिर में पुजारी बन गये। सन् 1966 में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तक की शिक्षा माणकचौक स्कूल रतलाम से प्राप्त की। बाद में पुनः सैलाना आ गये। लगभग 6 वर्ष तक दासाब की अखबार और स्कूल संचालन में मदद की। 21 जनवरी 1972 को दासाब के प्रयास से वे शासकीय प्राथमिक विद्यालय ग्राम हिंगडी तहसील आलोट जिला रतलाम में बतौर सहायक शिक्षक नियुक्त हुए। उनका विवाह हमारे रिश्ते में मौसाजी लगने वाले ग्राम ढाबलाधीर जिला कालापीपल निवासी जमनाप्रसाद जी शर्मा की भतीजी सुशीलादेवी के साथ मई 1973 में हुआ। काकीसाब के पिता मूल रुप से ग्राम मोलगा जिला ईछावर के निवासी थे। उनके निधन के बाद काकीसाब अपने चाचा जमनाप्रसादजी के पास ढाबला आ गयी थीं। और उनके काका ने ही उनका विवाह करवाया। काकासाब की दो पुत्रियाँ मीना और भावना है जो क्रमशः12 अक्टूबर 1974 और 13 अक्टूबर 1975 को जन्मीं। बाद में काकासाब ग्राम सुखेडा, बीटीआई पिपलौदा, बिबडोद आदि स्थानों पर पदस्थ रहने के पश्चात माह नवंबर 1977 में प्राथमिक विद्यालय धामनोद ट्रांसफ़र होकर आ गये तथा सेवानिवृत्ति दिनांक 31 दिसंबर 2007 तक इसी विद्यालय में कार्यरत रहे।   काकासाब बहुत ही मेहनती व्यक्ति थे। वे गरमी की छुट्टियों में आते तो दासाब और बाद में बाबूजी की अखबार/स्कूल संचालन में मदद करते। दीपावली अवकाश पर मम्मी का घर की साफ-सफाई, रंगने-पोतने के काम में हाथ बंटाते। हम सब भाई बहनों को घड़ी देखना, साईकल चलाना भी काकासाब ने सिखाया। तथा बीमार होने पर हम सबको काकासाब ही अस्पताल ले जाते थे। मैने काकासाब के साथ अनेक फिल्में रतलाम और सैलाना के टाकिज में  देखीं। काकासाब जब तक स्वस्थ रहे हमेशा साईकिल से सैलाना आते थे। मुझे याद नहीं कि काकासाब ने दासाब, बाई और बाबूजी की किसी बात को नहीं माना हो। उन्होंने कभी भी इनके आदेश की अवज्ञा नहीं की।  अपने जीवन के अंतिम दशक में वे काफ़ी बीमार रहे। काकीसाब ने उनकी बहुत सेवा की। वे अकेली ही काकासाब की बीमारी से जुझती रहीं। और अंततः 8 मार्च 2012 को धुलेंडी के दिन काकासाब का निधन हो गया। 


——

काकीसाब के पिताजी भी ग्राम मोलगा के संपन्न किसान थे खरीब ढाईसो बीघा जमीन थी उनका भी कैंसर से निधन होने पर सारी जमीन बिक गयी और काकीसाब को अपने  चाचा जो उनके पिता के दूर के रिश्ते के भाई थे के पास जाना पड़ा। 

उनके भाई जो बहुत छोटे थे को रिश्तेदारों ने बेवक़ूफ़ बनाकर आपस में लड़वाया और औने-पौने दाम पर सब जमीन खरीद ली। 


काकीसाब की बहिन भी थी। उनका किसी गांव के पोस्टमैन के साथ विवाह हुआ। भाई कहाँ है किसी को पता नहीं। 


- ज्योति नारायण त्रिवेदी

No comments: