Tuesday, May 2, 2023

16 दिसम्बर 2020

हमारे फुफाजी अशोक कुमार जी आचार्य का जन्म 11 दिसंबर 1948 को रतलाम में हुआ था। फुफाजी का वास्तव में सरनेम मांवर है। उनके पिताजी को कोई उपाधि मिलने से सरनेम आचार्य हो गया। वे रतलाम से करीब 20 किमी दूर बदनावर रोड पर एक छोटे से गांव रेनमऊ के मूल निवासी है। आज भी फुफासा के भाई-बंधु रेनमऊ में रहते हैं। फुफाजी अपने पिता स्वर्गीय नंदकिशोरजी आचार्य, जिन्हें हम सब बासाब कहते थे, तथा माता स्वर्गीय रतनबाई की मझली संतान थे। उनकी माता रतनबाई का पीहर सैलाना में ही था।  रतनबाई सैलाना निवासी लेबर ऑफिसर रामचन्द्र दुबे की बहन थी। फुफाजी के एक बड़े भाई और एक छोटा भाई थे। बासाब नंदकिशोर जी तीन भाईयो में सबसे छोटे थे। बासाब सैलाना से मेट्रिक पास कर पश्चिम रेल्वे के रतलाम स्टेशन पर मालबाबू बन गये।  बासाब ने अपने बच्चों की आगे की पढाई के लिए परिवार को रतलाम शिफ्ट किया और बागड़ों के वास स्थित आनंद निवास में किराए से रहने लगे जिसे बाद में उन्होने खरीद लिया। फुफाजी की माता रतनबाई का उनके बचपन में निधन हो गया था। उनसे दस वर्ष बड़े भाई और भाभी तथा बासाब ने उनकी परवरिश की।  फुफासा अपने बड़े भाई  मणिशंकर जी आचार्य तथा भाभी विद्या जी को अपने माता-पिता मानते थे और इस रिश्ते को अंतिम समय तक निभाया।  वास्तव में इस घोर कलयुग में ऐसे दो भाई मिलना मुश्किल है जो एक दूसरे से इतने गहरे जुड़े हों। हमने भगवान राम और लक्ष्मण को नहीं देखा पर इन दो भाईयों देखकर लगता था कि ये दोनो भाई कलयुग के राम-लक्ष्मण ही थे। फुफाजी ने अपने बड़े भाई की दोनो बेटियों को भी अपनी बेटियों जैसा ही माना। फुफाजी की माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा राष्ट्रीय विद्या पीठ घास बाजार रतलाम में हुई। हायरसेकंडरी की शिक्षा माणक चौक स्कूल में प्राप्त करने के बाद शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रतलाम से विज्ञान संकाय में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद सन् 1974 में नागदा ग्रेसिम मिल में बतौर सुपरवाईजर नियुक्त हुए। उनका विवाह 15 फरवरी 1976 को हमारी बुआ हिंदबाला बेन के साथ हुआ।  बुआजी बीएड करने के बाद जुलाई 1978 में प्राथमिक स्कूल नागदा में शिक्षिका बन गईं। बुआजी ने भी नौकरी के साथ ससुराल की ज़िम्मेदारियों को काफी अच्छे से निभाया। उन्होंने भी अपने जेठ-जेठानी को सास-ससुर ही माना और उनकी बेटियों को ननद। वे भी उनको भाभी ही कहती हैं। फुफाजी के चार बेटियां हैं। चारो बेटियां भी अपने ददिहाल और ननिहाल से मिले संस्कारो का पालन करते हुए काम कर रही हैं तथा घर की ज़िम्मेदारियाँ भी निभा रही हैं।  फुफासा ने सन् 2000 में वी-आर-एस लिया। चूँकि बुआजी अभी नौकरी में थी इसलिए नागदा में ही रहे। सन् 2017 में बुआजी के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद परिवार का मोह रतलाम खींच लाया और दो साल पहले कस्तूरबा नगर सुंदरवन में मकान बनाया। उनका अपने परिवार से कितना लगाव था इससे पता चलता है कि पिछले साल पिंटू की शादी के बाद जब वे जाने लगे तब हम तीनों भाईयों को बुलाया और एक लाख रुपये देने की पेशकश की और कहा ये पैसे पिंटू की शादी के लिए ही रखे हैं। वापस नहीं लूँगा। हालांकि भाईसाब ने विनम्रतापूर्वक उनके अनुरोध.को ठुकरा दिया। आज के इस स्वार्थी युग में  सगा भाई भी अपने भाई के लिए एक पैसा नहीं निकालते हैं। फुफाजी ऐसा कैसे कर लेते थे इसका उत्तर कभी भी नहीं मिलेगा।  वास्तव में फुफाजी एक जांबाज और दिलदार व्यक्ति थे। बाबुजी के जाने के बाद आज ऐसा पहली बार लगा कि आज (16 दिसम्बर 2020) हमने भी अपने पिता जैसे व्यक्ति को खो दिया है

- ज्योति नारायण त्रिवेदी 

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