मामीसाब आज भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। किसी चीज़ का शौक़ नहीं। कोई घूमने का शौक़ नहीं। (जबकिमामासाब रेलवे में थे। साल में तीन बार देश में कहीं भी नि:शुल्क यात्रा के पास मिलते थे। दोनों कहीं नहीं गए।परिवार की ज़िम्मेदारियों का पूरा निर्वाह किया। दो ननद और उनके बच्चे उनके साथ कई साल रहे।) कहींकिसी से मिलने की चाह नहीं। कोई तीर्थ की इच्छा नहीं। कोई पूजा पाठ का रूटीन नहीं। की तो ठीक, नहीं कीतो ठीक। अब उम्र हो गई है सो खाना नहीं बनातीं। लेकिन सब्ज़ी तैयार करने के सारे काम कर देती हैं। मटरछील देती हैं। भिण्डी काट देती हैं।
मामीसाब आज भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। जब मिलता हूँ तो कहती हैं बहुत दुबला हो गया हूँ। अपना ख़्यालरखा करो। हमेशा आप कह कर सम्बोधित किया है। किसी भी भानजे/भानजी को तू नहीं कहा।
मामीसाब आज भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। आज भी जाते वक्त आँखों में आँसू आ जाते हैं। सर पे हाथ फेरतीहैं।
मामीसाब आज भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। जो चीज़ें वो लोगों से फ़ोन करके पूछ सकती हैं, मुझसे पूछती हैं।लाड़ी कैसी है? बच्चे कैसे हैं?
मैं उदयपुर मौसी के पास जा रहा हूँ। कहती हैं उनसे कहना मुझसे भूल हो गई। राखी पर कुछ नहीं भेजा। मुझेयाद ही नहीं रहा। अब आप जा रहे हो तो ये उन्हें दे देना।
सारी बातें फ़ोन पर कह सकती हैं। लेकिन मैं कहूँगा तो बेहतर हैं।
जैसे चिठ्ठियों में या चैट मे वो बात नहीं कही जा सकती जो फ़ोन पर कह सकते हैं। उसी तरह से फ़ोन पर ऐसीबातें नहीं की जाती। या तो स्वयं जाओ या कोई जाए तो वह कह दे।
उसी तरह से उन्होंने मुझे दो बार कहा कि रतलाम वाली मौसी से कहना कि उनकी तबियत ठीक नहीं है तो वेसैलाना न आए, (पिंटू को देखने, जो कि बाइक दुर्घटना में ज़ख़्मी हालात में है), मामीसाब स्वयं किसी के साथचली जाएँगी रतलाम, मासीजी को देखने।
जबकि उन्हें मालूम है कि मैं रतलाम नहीं, उदयपुर जा रहा हूँ। मैं तो उनसे मिलूँगा नहीं। फिर इस बात में क्यातुक है। शायद यही कि संदेश वाहक की बात में ज़्यादा औपचारिकता है।
और हाँ, उनका रतलाम जाना बहुत मुश्किल है। बहुत कम जो कहीं आती-जाती हैं। शरीर भी साथ नहीं देता।
राहुल उपाध्याय । 13 जनवरी 2023 । मुंगेड़
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