Sunday, February 6, 2022

लता मंगेशकर

संयोग देखिए कि 6 फ़रवरी को मम्मी को गुज़रे हुए 6 महीने हो गए, और उसी दिन लता जी भी चल बसीं। 


मम्मी के अंतिम संस्कार में मेरे छोटे बेटे, मिहिर, ने कहा था कि यदि दादी नहीं होतीं तो हम अमेरिका तो क्या इस दुनिया में नहीं होते। 


हम कई बार भूल जाते हैं कि हमें यहाँ तक पहुँचाने में कितनों का योगदान है। हम बस यही सोचते हैं कि एक अच्छी कम्पनी में नौकरी मिलने से हमें ग्रीन कार्ड मिल गया। 


लता जी न होती तो हिन्दी फ़िल्म संगीत अवश्य अधूरा रहता। मैं तो अवश्य मैं न होता। साहिर के लब्ज़, आनन्द बक्षी के गीत, मजरूह की ग़ज़लें, और गुलज़ार की पेचीदा शायरी मेरे दिल में कैसे उतरती? न अमीन सायनी होते, न बिनाका गीतमाला होती

, न यश चोपड़ा की नायिकाएँ प्रेम करतीं, न राज कपूर की नायिका एक कमरें में बंद होती। 


लता जी के कई गीत मेरे बेहद प्रिय हैं। मैं किसी वीरान टापू पर उनके गीतों के सहारे एक जीवन बीता सकता हूँ। मैंने टेनेसी के स्मोकी माउंटेन्स की दिलकश खामोशी में लता की मधुर आवाज़ सुनी है। कार के स्पीकर्स से वादियों में घुलती आवाज़ आज भी मुझे एक मीठा दर्द दे जाती है। इस एक गीत ने मुझे प्यार की शक्ति से रू-ब-रू कराया। जब भी ख़ुद को कमज़ोर पाता हूँ, यह गीत सुन लेता हूँ। 


वो नक़्श ही क्या हुआ जो मिटाए से मिट गया

वो दर्द ही क्या हुआ जो दबाए से दब गया


https://youtu.be/nmJwIzRZh2E 


राहुल उपाध्याय । 6 फ़रवरी 2022 । सिएटल 


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