मैं सैलाना से हूँ। सैलानी मेरे खून में है।
कोरोना की महामारी सबके लिए अभिशाप रही। मेरे लिए वरदान। 2019 से मम्मी मेरे साथ अमेरिका में थी। दिन में तीन घंटे से ज़्यादा मैं उन्हें अकेले नहीं छोड़ता था। नौ बजे दफ्तर जा कर बारह बजे वापस आ जाता था। खाना बनाकर खिला कर दो बजे दफ्तर जाता था। पाँच बजे लौट आता था। अपार्टमेंट के सामने ही दफ़्तर था।
2020 में कोरोना के आते ही हम माँ-बेटे चौबीसों घंटों साथ थे। ऑफिस का काम कहीं से भी कर सकते थे।
2021 में मम्मी गुज़र गईं। कोराना भी चला गया। रह गई कहीं से भी काम करने की आदत।
26 सितम्बर को जब सिंगापुर से निमंत्रण आया कि चले आईए एक तरफ़ा टिकट लेकर। मैं तुरंत राज़ी हो गया। तब से अब तक वापस सिएटल नहीं गया हूँ।
तब से अब तक सिंगापुर, मलेशिया. थाइलैंड, भारत, चीन, नेदरलैंड्स घूम चुका हूँ। आज फ़्रांस जा रहा हूँ पेरिस का आयफल टॉवर देखने। अम्सटर्डम से यूरोप के बाक़ी देशों में हवाई जहाज़ के अलावा ट्रेन, बस, कार से भी ज़ाया जा सकता है।
मैं एक बस टूर के साथ जा रहा हूँ। सुबह पाँच बजे बस निकली हैं। दो बजे तक पेरिस पहुँचने की सम्भावना है।
रास्ते में दो जगह रूके थे - नाश्ते और भोजन के लिए। मैक्डॉनल्ड और स्टारबक्स जैसे रेस्टोरेन्ट हैं।
मेरे साथ मेरे मेज़बान मनीष की पत्नी रश्मि ने मेरी प्रिय भिण्डी की सब्ज़ी और रोटियाँ बन कर रख दी थीं। सुबह की पाँच बजे की बस के लिए मनीष मुझे छोड़ने आ रहे थे। घर से चार बजे निकलना था। रश्मि ने साढ़े तीन बजे उठ कर रोटियाँ बनाईं। रात बारह बजे भिण्डी की सब्ज़ी बनाकर सोई थीं।
कई बार समझ नहीं आता कि मेरी क़िस्मत इतनी अच्छी कैसे हैं कि मुझे इतने अच्छे लोग मिल रहे हैं।
राहुल उपाध्याय । 23 दिसम्बर 2023
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