Tuesday, December 12, 2023

एनिमल - समीक्षा

एनिमल - एक ज़माने में सिर्फ़ तेलुगू फ़िल्म बनकर ही रह जाती। पुष्पा के बाद से अब दक्षिणी फ़ार्मूले पूरे भारत ने स्वीकार कर लिए हैं। जैसे कि डोसा-इडली पूरे भारत में बड़े चाव से खाए जाते हैं। फ़र्क़ यह रह जाता है कि सारे मुख्य अभिनेता तो मुम्बई के होते हैं पर गाजर-मूली की तरह कट जाने वाले कलाकार दक्षिण भारत के होते हैं। उसी से पता चल जाता है कि निर्देशन और निर्माण दक्षिण भारत का है। रही-सही कसर तब पूरी हो जाती है जब कूल बनने के चक्कर में कच्छा पुराण भी शामिल कर लिया जाता है, ख़ासकर तब जब तीन सौ लोगों का नर संहार होने वाला है। 


फ़िल्म किसी महाकाव्य की तरह अलग-अलग अध्यायों में प्रस्तुत की जाती है। लेकिन हर अध्याय में बेटे का पिता के प्रति प्यार की अति समाहित है। ख़ून-ख़राबा लगभग हर फ़्रेम में है। गॉडफ़ादर से बहुत प्रभावित हैं निर्देशक। पूरे परिवार को बड़ा-चढ़ा कर दिखाया गया है। दुश्मनी भी। 


अंत में भी जैसे अभी पेट भरा नहीं है सो खूब खून-ख़राबा है। और दूसरे भाग की सम्भावना भी स्थापित कर दी जाती है। 


जितने भी सीन में रश्मिका है, बेहतरीन सीन हैं। बाक़ी सब या तो फूहड़ हैं या वीभत्स रस के हैं। 


गीत कई हैं, गीतकार कई हैं, संगीतकार कई हैं। बैकग्राउंड कम्पोज़र एक ही है। क्या कमाल का संगीत है। हर दृश्य को झेलने लायक बनाने में सहायक है। 


रणबीर का अभिनय कमाल का है। रश्मिका की कशिश बरकरार है। एक दो सीन छोड़ कर सब में वह सामान्य वेष भूषा में है। आजकल लोगों ने केदारनाथ को कश्मीर समझ रखा है। यह संदेश भी सहजता से दे दिया गया है। यह भी कि एक ही परिवार के जब दो गुट बन जाते हैं तो दूसरा मुसलमान बन जाता है और मुस्लिम गुट में कोई गुण नहीं रह जाता है। और जब वह गुट हिंदू गुट पर हमला करता है और हिन्दू गुट आत्मरक्षा में हथियार उठाता है तो उसे अपने ही अपराधी करार देते हैं। 


राहुल उपाध्याय । 12 दिसम्बर 2023 । सिंगापुर 





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