Monday, March 7, 2022

उठ मेरी जान!

कैफी आज़मी जाने-माने शायर हैं जिन्होंने बहुत ही उम्दा गीत लिखे हैं हिन्दी फ़िल्मों के लिए। फ़िल्मों के अलावा भी उनकी कुछ रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उनमें से एक है - उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे 


इस रचना में कई उर्दू के ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ शायद सबको न पता हो। उनके अर्थ कविताकोष में दिए गए हैं। मैंने वह रचना यहाँ ज्यों का त्यों ही प्रस्तुत कर दी है। लेकिन बार-बार अर्थ देखने में प्रवाह में बाधा आती हो तो उसे अंत में ऐसे लिख दी है कि अर्थ की आवश्यकता ही न पड़े। 


लेकिन इन सबके पहले एक नायाब रचना सुनें और पढ़ें। कठिन शब्दों की जगह आसान शब्दों में इसे स्वरबद्ध कर गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया 1997 की फ़िल्म 'तमन्ना' में। सोनू निगम ने अत्यंत भावपूर्ण तरीक़े से गाया है। 


https://youtu.be/3Ozdf3puHQ4


गीत के शब्द:

ज़िन्दगी तो है अमल,

सब्र के काबू में नहीं

नब्ज़ का गर्म लहू ठण्डे से आंसू में नहीं

उड़ने-खुलने में है ख़ुशबू, ख़म-ए-गेसू में नहीं

जन्नत एक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उसकी आज़ाद रविश पर ही

मचलना है तुझे

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तेरे आँचल में हैं किरणें भी, अँधेरा ही नहीं

तुझसे रातें भी महकती हैं, सवेरा ही नहीं

दिल में अरमान भी हैं, ग़म का बसेरा ही नहीं

ग़म के घनघोर अँधेरे से निकलना है तुझे


क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं

रोशनी भी तेरी आँखों में है पानी ही नहीं

हार तूने कभी तक़दीर से मानी ही नहीं

तू हक़ीक़त भी है, दिलचस्प कहानी ही नहीं

हर अदा तेरी क़यामत है, जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे


—-

कविताकोष की प्रस्तुति:


http://kavitakosh.org/kk/औरत_/_कैफ़ी_आज़मी

https://youtu.be/_wX8qCH_xAM


उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे 


क़ल्ब-ए-माहौल[1] में लर्ज़ां[2] शरर-ए-जंग[3] हैं आज 

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त[4] के यक-रंग हैं आज 

आबगीनों[5] में तपाँ[6] वलवला-ए-संग[7] हैं आज 

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़[8] ओ हम-आहंगल[9] हैं आज 

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन[10] की बहार 

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार[11] 

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार[12] 

ता-बा-कै[13] गिर्द तिरे वहम ओ तअय्युन[14] का हिसार[15] 

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत[16] से निकलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है 

तपती साँसों की हरारत[17] से पिघल जाती है 

पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है 

बन के सीमाब[18] हर इक ज़र्फ़[19] में ढल जाती है 

ज़ीस्त[20] के आहनी[21] साँचे में भी ढलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


ज़िंदगी जोहद[22] में है सब्र के क़ाबू में नहीं 

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं 

उड़ने खुलने में है निकहत[23] ख़म-ए-गेसू[24] में नहीं 

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं 

उस की आज़ाद रविश[25] पर भी मचलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


गोशे-गोशे[26] में सुलगती है चिता तेरे लिए 

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा[27] तेरे लिए 

क़हर[28] है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए 

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए 

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


क़द्र अब तक तेरी तारीख़[29] ने जानी ही नहीं 

तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी[30] ही नहीं 

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं 

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं 

अपनी तारीख़ का उनवान[31] बदलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत[32] से निकल 

ज़ोफ़-ए-इशरत[33] से निकल वहम-ए-नज़ाकत[34] से निकल

नफ़्स[35] के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत[36] से निकल 

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल 

राह का ख़ार[37] ही क्या गुल[38] भी कुचलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ ये अज़्म-शिकन[39] दग़दग़ा-ए-पंद[40] भी तोड़ 

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद[41] भी तोड़ 

तौक़[42] ये भी है ज़मुर्रद[43] का गुलू-बंद भी तोड़ 

तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद[44] भी तोड़ 

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू फ़लातून[45] ओ अरस्तू है तू ज़ेहरा[46] परवीं[47] 

तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं

[48] तिरी ठोकर में ज़मीं 

हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर[49] से जबीं[50] 

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं 

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


शब्दार्थ:

1 मर्मस्थल, ह्रदय

2 कंपित

3 युद्ध की चिंगारियाँ

4 जीवन

5 शराब की बोतल

6 धड़कन

7 पत्थर की उमंग

8 एक स्वर

9 एक लय रखनेवाले

10 सभ्यता, शहरों का बाग

11 धुरी

12 आकांक्षा का पालना

13 कहाँ तक, कब तक, ताकि

14 निश्चय करना, आस्तित्व

15 नगर का परकोटा, क़िला

16 तन्हाई की महफ़िल

17 तपिश

18 पारा

19 पात्र

20 जीवन

21 लोहा

22 संघर्ष

23 महक

24 बालों का घुमाव

25 रंग-ढंग

26 कोने-कोने

27 मृत्यु

28 प्रलय, विनाश

29 इतिहास

30 आँसू बहाना

31 शीर्षक

32 प्राचीनता के बन्धन

33 ऐश्वर्य की दुर्बलता

34 कोमलता का भ्रम

35 इच्छा, कामना

36 महानता का घेरा

37 काँटा

38 फूल

39 संकल्प भंग करने वाला

40 उपदेश की आशंका

41 कसम

42 हार, हँसली

43 पन्ना

44 समझदार पुरुषों के मापदंड

45 प्लेटो

46 शुक्र ग्रह (सुन्दरता का प्रतीक)

47 कृतिका नक्षत्र (सुन्दरता का प्रतीक)

48 आकाश

49 भाग्य के चरण

50 माथा


—-

शब्दार्थ के साथ:


दिल में दहकती हुई आग है आज 

हौसले वक़्त के और जीवन के एक रंग में हैं आज 

पैमानों में बसी पत्थरों की उमंग है आज 

हुस्न और इश्क़ एक सुर और एक लय में हैं आज 

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे 

उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


तेरे क़दमों में हैं बागों की बहार 

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का आधार 

तेरी बाँहें हैं आकांक्षाओं का पालना

कब तक तेरे इर्द-गिर्द रहेंगे वहम के क़िले 

कौंद कर तन्हाई की महफ़िल से निकलना है तुझे


तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है 

तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है 

बन के पारा चाहे जैसे ढल जाती है 

जीवन के लोहों के साँचों में भी ढलना है तुझे 


ज़िंदगी संघर्ष में है सब्र के क़ाबू में नहीं 

अस्तित्व की रगों का लहू काँपते आँसू में नहीं 

उड़ने-खुलने में है ख़ुशबू बालों को बांधने में नहीं 

उस की आज़ाद तबियत पर भी मचलना है तुझे 


कोने-कोने में सुलगती है चिता तेरे लिए 

फ़र्ज़ के भेस आती है मौत तेरे लिए 

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए 

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए 

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे 


क़द्र अब तक तेरी वक़्त ने जानी ही नहीं 

तुझ में शोले भी हैं बस पानी ही नहीं 

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं 

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं 

अपनी कहानी का शीर्षक बदलना है तुझे 


तोड़ कर रस्म के बुत रिवाजों से निकल 

ऐश्वर्य की झूठी शान-ओ-शौक़त से निकल 

कोमलता के वहम से निकल

इच्छाओं के खींचे हुए घेरों से निकल 

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल 

राह का काँटा ही नहीं गुल भी कुचलना है तुझे


तोड़ ये संकल्प भंग करने वाले उपदेश भी तोड़ 

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंध भी तोड़ 

हीरे-पन्ने के हार गुलू-बंद भी तोड़ 

तोड़ समझदार पुरुषों के मापदंड भी तोड़ 

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे 


तू फ़लातून और अरस्तू है, तू ज़ेहरा-परवीं

तेरे क़ब्ज़े में है आसमाँ, तेरी ठोकर में ज़मीं 

हाँ उठा, जल्द उठा किस्मत की चौखट से माथा

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं 

लड़खड़ाएगी कहाँ तक, कि सँभलना है तुझे 


—-

राहुल उपाध्याय । 7 मार्च 2022 । सिएटल 



















 











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