कवि का कोई भरोसा नहीं। आज कुछ कह दे, कल ठीक उसका उल्टा।
मोहब्बत ही सब कुछ है। मोहब्बत कुछ नहीं।
ज़िन्दगी खूबसूरत है। ज़िन्दगी नर्क है।
दरअसल ये हर व्यक्ति की मन:स्थिति है। भाव बदलते रहते हैं। आज कुछ। कल कुछ।
इन्हीं भावों की अभिव्यक्ति कविताओं में मिलती हैं।
साहिर ने एक तरफ़ तो यह लिखा कि तुझे ज़मीं पर उतारा गया है मेरे लिए। और इस गीत में कमाल ही कर दिया:
जिस्म का बोझ उठाये नहीं उठता तुमसे
और फिर:
कोई रूकता नहीं ठहरे हुए राही के लिये
कोटि-कोटि प्रणाम इस रचनात्मकता को।
पूरा गीत यह रहा:
इतनी नाज़ुक ना बनो, हाय, इतनी नाज़ुक ना बनो
हद के अन्दर हो नज़ाकत तो अदा होती है
हद से बढ़ जाये तो आप अपनी सज़ा होती है
जिस्म का बोझ उठाये नहीं उठता तुमसे
ज़िंदगानी का कड़ा बोझ सहोगी कैसे
तुम जो हल्की सी हवाओं में लचक जाती हो
तेज़ झोंकों के थपेड़ों में रहोगी कैसे
ये ना समझो के हर इक राह में कलियां होंगी
राह चलनी है तो कांटों पे भी चलना होगा
ये नया दौर है इस दौर में जीने के लिये
हुस्न को हुस्न का अन्दाज़ बदलना होगा
कोई रूकता नहीं ठहरे हुए राही के लिये
जो भी देखेगा वो कतरा के गुज़र जायेगा
हम अगर वक़्त के हमराह ना चलने पाये
वक़्त हम दोनों को ठुकरा के गुज़र जायेगा
मोहम्मद रफ़ी ने गाया भी कमाल का है।
राहुल उपाध्याय । 15 मार्च 2022 । सिएटल
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