Saturday, November 25, 2023

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वाणी नवीं कक्षा में थी। सोलह-सत्रह वर्ष की। तभी उसकी शादी हो गई। बच्ची थी। कोई जानकारी नहीं थी। पढ़ना चाहती थी। अजिया सास ने मना कर दिया। हमारे घर की बहू बाहर पढ़ने नहीं जातीं। घर में बहुत सारा काम भी था। सास का, ससुर का, अजिया सास का, जेठानी का, जेठ का, पति का। पति पाँच साल बड़ा था। ड्राइवर का काम करता था। 


एक साल में बेटा हो गया। 16 मार्च 2009। ख़ुद का जन्मदिन याद नहीं। याद इसलिए नहीं कि किसी को पता नहीं। वह मुझे एयरपोर्ट पर मिली। मेरी ही फ़्लाइट से सिंगापुर जा रही थी। बातों-बातों में मैंने उसका सारा भूगोल-इतिहास खंगाल लिया। यूँ ही पूछ लिया (मेरी उम्र अब दादा जैसी दिखने लगी है तो ऐसे सवाल बेख़ौफ़ पूछ सकता हूँ) तुम्हारी उम्र कितनी है? बत्तीस? उसने कहा हाँ। मैंने कहाँ ये तो कमाल हो गया। सच्ची? उसने कहा इतनी ही होगी। मैंने कहा, क्या मतलब। तुम्हें नहीं पता तुम कब पैदा हुई। नहीं। मैंने कहा कि पासपोर्ट देखो उसमें तो है। उसने पासपोर्ट देखा और पढ़ कर बताया। 12 तारीख़, सातवाँ महीना, साल इक्यान्वे। 


इतना भोलापन? कहने लगी अपना जन्मदिन जानकर क्या करेंगे। बच्चों का जन्मदिन मनाते हैं हम तो। 


वह अकेली सिंगापुर जा रही है। पति और बच्चे नोएडा में हैं। उसकी बहन, अंजलि, की शादी उसके देवर से हुई है। साथ ही रहते हैं। सो बच्चों की देखरेख के लिए उसकी बहन काफ़ी है। 


सिंगापुर में वह काम करती है - कुक का। किसी रेस्टोरेन्ट में नहीं। एक चौदह वर्षीय बच्चे, जिसका नाम गौतम है, के लिए खाना बनाती है। उसी के साथ रहती है। सारे काम करती है। कपड़े धोती है। सुखाती है। प्रेस करती है। फ़ोल्ड करती है। घर साफ़ रखती है। बर्तन धोती है। बाज़ार से दूध-ब्रेड-सब्जी सब लाती है। यानी जो काम माँ करती हैं, वे सारे काम वह करती है। बदले में मिलता है फ़्री में रहना, खाना-पीना, सिंगापुर से भारत आने-जाने का किराया। और आठ सौ सिंगापुरियन डॉलर। यानी पचास हज़ार रूपये। जो सीधे नोएडा की बैंक में जमा हो जाते हैं। 


यही काम गौतम की माँ, सुनीता, भी सिंगापुर में रहकर कर सकती थीं। लेकिन वे बिज़नेस चला रही हैं बैंगलोर में। वाणी पाल रही है सुनीता का बेटा। अंजलि पाल रही है वाणी के बच्चे। और सुनीता बढ़ा रही है देश की जीडीपी। घर की नेट वर्थ। 


वाणी जो काम सिंगापुर में करती है उससे ज़्यादा काम वह ससुराल में करती थी। पर बदले में उसे कुछ नहीं मिलता था। पैसा तो दूर कोई उसकी तारीफ़ तक नहीं करता था। ताने ज़रूर मिलते थे। आज यह नहीं किया। कल वो नहीं किया। आधे-अधूरे काम करती है। न जाने क्या सीखा के भेजा है। किसी बात का सऊर नहीं है। बिना नहाए रसोई में घुस जाती है। 


सिंगापुर में शांति है। टाईम ही टाईम है। दो बेडरूम है। एक उसका, एक मेरा। दो बाथरूम है। एक उसका, एक मेरा। अब मैं कमा भी रही हूँ। विदेश में रह रही हूँ। हवाई जहाज़ में बैठ चुकी हूँ। पति से ज़्यादा कमा रही हूँ। वे पैंतीस कमाते हैं। मैं पचास। घर में बहुत इज़्ज़त है। 


सिंगापुर से पहले भी घरवालों ने नौकरी करने से कभी मना नहीं किया। नौकरी करेगी तो घर में दो पैसे आएँगे। बच्चों के स्कूल की फ़ीस में मदद हो जाएगी। बहू पढ़ने इसलिए नहीं जा सकती कि खर्चा होता है। कमाने के लिए सब छूट है। 


सिंगापुर मुझे पसन्द नहीं। बहुत महँगा है। ज़्यादा ही शांति है। कोई तीज-त्योहार तीज-त्योहार लगता ही नहीं। वही आसमान। वही ज़मीन। न होली का रंग। न नवरात्रि की रौनक। न गरबे का आलम। खुल के यूट्यूब पर गाने भी नहीं सुन सकते। आवाज़ कम रखो। पड़ोसी को दिक्कत होती है। कई तरह के क़ानून है। कब किसके चक्कर में जेल हो जाए पता ही नहीं। रोज़ एक सी ज़िंदगी। बहुत सुखद। और बहुत दुखद। 


राहुल उपाध्याय । 25 नवम्बर 2023 । दिल्ली 



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