Wednesday, September 27, 2023

राहुल… नाम तो सुना होगा

राहुल? नाम तो सुना होगा 


मेरा पासपोर्ट मुझे देते हुए यूनाइटेड एयरलाइंस के गेट एजेंट ने कहा। और मुझे जो ज़ोर की हँसी छूटी कि सेन फ़्रांसिस्को एयरपोर्ट का पूरा ए-9 गेट रात साढ़े ग्यारह बजे के सन्नाटे में गूँज उठा। 


मैं हवाई जहाज़ की तरफ़ बढ़ गया और वह दूसरे यात्री बोर्ड कराने में व्यस्त हो गया। 


ज़माना बदल रहा है और प्लेन से आने-जाने के तौर तरीक़े भी बदल रहे हैं। मैं अब कहीं भी जाता हूँ तो बैक-पैक में ही निकल जाता हूँ। चाहे कितने ही दिन का सफ़र हो। चार जोड़ी कपड़े बहुत हैं। एक लैपटॉप। बाक़ी चार्जर्स और पॉवर बैंक। 


चैक - यानी सामान किसी के सुपुर्द करना नहीं है। बोर्डिंग पास फ़ोन में है। धड़ल्ले से बैक-पैक स्क्रीनिंग की लाईन में लग जाओ। मेरे पास क्लियर सुविधा है जिससे स्क्रीनिंग के पहले वाली लाइन में नहीं लगना पड़ता। 


लेकिन आज मंगलवार की शाम साढ़े पाँच बजे सिएटल एयरपोर्ट पर कहीं कोई लाइन नहीं थी। मुझे ख़ुश होना चाहिए कि दुखी, मैं तय नहीं कर पाया। 


प्लेन में घुसते वक्त या कहीं भी सिएटल में मेरा पासपोर्ट चैक नहीं किया गया। ड्राइवर लायसेंस से काम चल गया। सिएटल से जा तो सेन फ़्रांसिस्को रहा था पर गंतव्य तो सिंगापुर था। यह तो देखना चाहिए था कि पूरी यात्रा की तैयारी है या नहीं। मेरे रविवारीय सामूहिक प्रातः भ्रमण के साथी के माता-पिता एक बार अमेरिका आने-जाने थे, भोपाल से दिल्ली पहुँच गए और तब पता चला कि पासपोर्ट तो लाए नहीं। कोई और व्यक्ति अगले दिन पासपोर्ट लेकर आया तब बात आगे बढ़ी। 


प्लेन में दाखिल होने से पहले सेन फ़्रांसिस्को एयरपोर्ट पर यात्री कैमरे के सामने खड़ा हो जाता है और वह पास कर देता है कि आप ही पासपोर्ट धारक है। गेट पर खड़ा एजेंट सिर्फ़ पासपोर्ट हाथ में लेता है, नाम पढ़ता है और वापस दे देता है। 


उसके ये चार अतिरिक्त शब्द दिल को छू गए। 


शायद वह सारे राहुलों से ऐसा कहता होगा। आज मंगलवार के दिन इस पूरी यात्रा में एक भी भारतीय नहीं है। न सिएटल से था। न सेन फ़्रांसिस्को से। 


मेरी दादी मेरा नाम कभी नहीं बोल पाईं। हमेशा रावल ही निकलता था। नानी भी राहुलिया कहती थीं। 


जन्मपत्री के हिसाब से मेरा नाम ड से होना था सो डाढ़म चंद लिख दिया गया। बाद में उसे धीरेंद्र कर दिया गया। जब बाऊजी लंदन जा रहे थे एल-एल-एम करने तब उन्होंने मेरा नाम राहुल कर दिया था। तब मैं तीन साल का था। तब की बातें मुझे नहीं पता। मुझे बताई गई हैं। 


जब तीसरी-चौथी में था तब मुझसे सब पूछते थे मेरे नाम का मतलब। मुझे नहीं पता था। आज भी नहीं है। बस सबसे कहता था कि मेरे नाम की तीन महान हस्तियाँ हैं। राहुल सांस्कृत्यायन। राहुल बारपुते। राहुल देव बर्मन। 


तब नहीं पता था कि मासूम देखते वक्त मेरा नाम पूरे थियेटर में बार-बार गूंजेगा। शाहरुख़ खान मुझे मशहूर कर देगा। 


(राहुल नाम का कोई अर्थ नहीं है। शब्दकोश में सिर्फ़ यह लिखा है - सिद्धार्थ का पुत्र। बाद में लोग अटकलें लगाने लगे कि वह जो बेड़ियाँ बन जाता है। या वह जो बंधन से मुक्त कर देता है। बाऊजी मुक्त हो गए थे। शिवगढ़ से। गाँव से। रतलाम से।)


राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2023 । सिंगापुर के बेहद क़रीब 



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