Wednesday, September 27, 2023

हड़ताल अमेरिका में

हड़ताल? और वह भी अमेरिका में? ये सब तो भारत में शोभा देता है। अमेरिका जैसे पूँजीवादी देश में हड़ताल कैसे हो सकती है। 


लेकिन एक नहीं, दो हड़तालें इन दिनों चर्चा में रहीं। एक ख़त्म हो गई है। दूसरी चल रही है। 


जो चल रही है उसमें कल, 26 सितम्बर को, हंगामा हो गया। अमेरिका के पदासीन राष्ट्रपति हड़ताल करने वाले मज़दूरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए। भला ऐसा भी कहीं होता है। क्या राष्ट्रपति को शोभा देता है यह कहना कि हमारी माँगें पूरी करो? वह तो स्वयं सक्षम है। 


मामला पेचीदा है। अमेरिका में जितने भी कारख़ाने हैं उन सब में यूनियन है। क्यों? क्योंकि उन्हें ब्लू कॉलर वर्कर्स कहा जाता है। उन्हें मासिक वेतन नहीं मिलता। उन्हें प्रति घंटे की दर से मेहनताना मिलता है। काम नहीं करो तो पैसा नहीं। कोई छुट्टी का लफड़ा नहीं। काम करो, पैसा लो। कोई और रिश्ता नहीं। सुविधाएँ नहीं। 


दूसरी तरफ़ है बाबू लोग जिन्हें व्हाइट कॉलर वर्कर्स कहा जाता है। उन्हें तय राशि का मासिक वेतन मिलता है। न कम, न ज़्यादा। बीमार हो जाओ, तनख़्वाह उतनी ही मिलेगी। छुट्टी के दिन भी काम करो। तनख़्वाह उतनी ही मिलेगी। भत्ते अलग से मिलते हैं। पर कोई ओवरटाइम नहीं। 


ब्लू कॉलर वर्कर छुट्टी लेना पसन्द नहीं करता। वह चाहता है कि वह हर रोज़ काम करे। चौबीसों घंटे काम करे। ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमा सके। दिन में आठ घंटे से ज़्यादा काम करता है तो डेढ़ गुना ओवरटाइम भी मिलता है। 


ऐसे हालात में जीवन नर्क हो जाता है जब पैसा कमाने के अलावा और कोई प्रयोजन नहीं रह जाता है। ऐसे वर्कर्स के बीच अक्सर कोई इन बातों का संज्ञान लेता है, उन्हें संगठित करता है, यूनियन बनाता है और यदा-कदा अपनी आवाज़ पहुँचाने के लिए हड़ताल भी करता है। 


यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स एक ऐसी यूनियन है जो कि सिर्फ़ एक कम्पनी के वर्कर्स की नहीं है। इसमें अमेरिका की तीन बड़ी कार कम्पनियों के वर्कर्स शामिल हैं। और आजकल इस यूनियन ने हड़ताल कर रखी है। उनका मानना है कि महंगाई बढ़ रही है और वर्कर्स की तनख़्वाह नहीं बढ़ रही है। मालिक और धनवान होते जा रहे हैं। मज़दूर और ग़रीब। 


अमेरिका में मूलतः दो राजनीतिक दल हैं। डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स। डेमोक्रेट्स का रूझान समाजवादी है। वे मानते हैं कि समाज के गरीब तबके का सरकार को ख़याल रखना चाहिए। जबकि रिपब्लिकन्स का कहना है कि सब अपना ख़याल स्वयं रख सकते हैं। सरकार मदद करेगी तो फिर समाज सरकार पर निर्भर हो जाएगा और समाज की प्रगति शिथिल हो जाएगी। 


इस हड़ताल के प्रति वर्तमान राष्ट्रपति की सहानुभूति है। डेमोक्रेट हैं तो होनी भी चाहिए। लेकिन हड़ताल के मोर्चे पर जाकर उनका साथ देना यह पदासीन राष्ट्रपति के लिए अभूतपूर्व है। कोई कह सकता है कि मदद करनी ही है तो कम्पनियों से क्यों नहीं कहते कि तनख़्वाह बढ़ाओ। तब पूँजीवाद रास्ते में आ जाता है कि ये सब मामले बाज़ार तय करता है। सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। 


केन्द्र सरकार ने न्यूनतम प्रति घंटा मेहनताने की राशि तय कर रखी है। हर पाँच-दस साल में बढ़ जाती है। 1986 में जब मैं यहाँ आया था तब $3.35 थी। आज 2023 में $7.25 है। राज्य सरकारें चाहें तो इसे बढ़ा सकती हैं। शहर की सरकार भी। मेरे शहर सिएटल में $15 है। 


सरकार ने कई संस्थाएँ और एजेंसियाँ भी बनाई हैं जो निगरानी रखती है ताकि मज़दूरों के मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो। उन्हें समुचित सम्मान मिले। काम का वातावरण सुरक्षित हो। सफ़ाई हो। कहीं भी ज़्यादती न हो। 


इसीलिए आय-फोन डिज़ाइन अमेरिका में होता है लेकिन बनता कहीं और है। अमेरिका में बनेगा तो तीन गुना महँगा पड़ेगा। यहाँ इसीलिए कोई भी चीज ख़राब हो जाए तो सही नहीं होती। उसे कबाड़ में फेंक नई ले लेते हैं। सुधरवाने की क़ीमत कोई दे नहीं दे पाएगा। 


यहाँ घड़ीसाज नहीं है। मोची नहीं है। दर्ज़ी नहीं है। घड़ी-जूते-चप्पल-कपड़े सब नए ले लो। सुधारने वाला कोई नहीं है। 


घर के काम भी इसीलिए ख़ुद करने पड़ते हैं। कोई भी इतना रईस नहीं है कि ड्राइवर रखे, बावर्ची रखे, कामवाली बाई रखे। दफ़्तर में भी कोई चाय बना कर नहीं देता है। सब अपने आप करो। जहां इंसान की ज़रूरत आ पहुँचती है दाम बढ़ जाते हैं। 


अगले साल राष्ट्रपति चुनाव है। इसलिए भी बाईडेन हड़ताल में पहुँच गए कि कोई तो कारण हो सुर्ख़ियों में आने का। यहाँ भक्त मीडिया नहीं है कि उनके आगे-पीछे घुमता रहे। 


जिस राज्य में यह हड़ताल हो रही है उस राज्य का अमेरिका के चुनाव में बहुत बड़ा हाथ है। यह राज्य उतना बड़ा नहीं है जितना न्यू यॉर्क है, या टेक्सास है, या कैलिफ़ोर्निया है। लेकिन यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह पहले से तय नहीं है कि ये किस दल को वोट देगा। अमेरिका में पचास राज्य हैं। अड़तीस राज्यों ने पहले से ही तय कर रखा है कि वे किसे वोट देंगे और यह सर्वविदित है। इसलिए वहाँ सही मायने में कोई चुनाव है ही नहीं। टक्कर की लड़ाई मिशिगन, विस्कांसिन, ओहायो और फ़्लोरिडा जैसे बारह राज्यों में है। यहाँ पासा कभी भी पलट सकता है। जितने भी तटीय राज्य है वहाँ बाहर से आए बसे लोग ज़्यादा है। उन्हें डेमोक्रेट पसन्द है क्योंकि उन्हें सरकार के सहारे की ज़रूरत है। ताकि वे जल्दी से जल्दी यहाँ अपने पाँव जमा सके। ग्रीनकार्ड मिल सके। सिटीज़न बन सके। जितने भी अंदरूनी राज्य हैं वे बरसों से यहाँ बसे हुए हैं, आत्मनिर्भर हैं, ख़ैरात नहीं चाहिए। मिशिगन जैसे राज्य जहां कारख़ाने हैं वे दोनों से मदद चाहते हैं। उन्हें सरकार के मदद की आवश्यकता है ताकि ऐसी नीतियाँ बनाई जाए कि नौकरियाँ देश से बाहर न जाए। ऐसे में डेमोक्रेट काम आते हैं। लेकिन यही डेमोक्रेट उन्हें पसन्द नहीं आते हैं जब बाहर से लोग काम करने आते हैं और इनकी नौकरियाँ हड़प लेते हैं। जबकि यह सच नहीं है। जो बाहर से आते हैं वे  कुछ और काम करते हैं। इन कारख़ानों में नहीं। पर जब किसी विदेशी को देखते हैं तो लगता है मेरी ही नौकरी लेने आया है। 


बाईडेन और ट्रम्प दोनों ही मिशिगन आते रहेंगे। 2020 के चुनाव में यूनियन ने बाईडेन को समर्थन दिया था। अगले साल का पता नहीं। 


दूसरी हड़ताल जो अभी ख़त्म हुई, वह थी स्क्रीन राइटर्स की। ये लोग कौन हैं? ये वो लोग हैं जो स्क्रिप्ट लिखते हैं, डॉयलॉग लिखते हैं जिन्हें हमारे चहेते टॉक शो होस्ट, स्टैंडअप कॉमेडियन और फ़िल्मी सितारे अभिनीत करते हैं। क्या आप जानते हैं कि कौन बनेगा करोड़पति शो पर जो अमिताभ बातें करते लगते हैं वे वास्तव में एक स्क्रिप्ट के अनुसार कर रहे हैं? जी। पूरी लेखकों की टीम है हर शो के पीछे। कपिल शर्मा भी अपनी लाइनें नहीं, किसी और की बोल रहे हैं। 


ये लेखक मज़दूरों जैसे गरीब तो नहीं हैं। हॉलीवुड में रहते हैं। इन्हें क्या दिक्कत है? इनकी दिक्कत यह है कि ये नहीं चाहते कि असली काम ए-आई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) करे, और ये सिर्फ उसे सुधारे। सबकी अपनी जंग है। उन्हें अपनी रचनात्मकता को प्रखर रखना है। 


ख़ैर यह हड़ताल तो निपट गई और इसमें कोई राजनेता नहीं उतरा। 


अमेज़ॉन का जबसे प्रादुर्भाव हुआ है नई समस्या पैदा हो गई है। ये हैं तो आई-टी कम्पनी जिसमें काम करने वाले व्हाइट कॉलर वर्कर्स करोड़ों कमाते हैं। पर ब्लू कॉलर वर्कर्स भी हैं जो न्यूनतम दर पर तनख़्वाह पाते हैं। ये वो लोग हैं जो सामान डब्बे में डाल कर ट्रक लोड करते हैं। ये ब्लू कॉलर वर्कर्स यूनियन बना चाहते हैं पर मैनेजमेंट किसी न किसी तरह से बहला-फुसलाकर मना लेता है मज़दूरों को और बात टल जाती है। 


स्टारबक्स की भी अपनी यूनियन है। बड़ी मशक़्क़त से बनी है। पर कोई ख़ास काम नहीं कर पाई है। 


राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2023 । अमेरिका से सिंगापुर की 16 घंटे की फ़्लाइट से


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