Sunday, June 25, 2023

सशक्त कथानक

कोई भी कथानक सशक्त तभी होता है जब उसके पात्रों मे, खासकर नायक में, गुण-अवगुण दोनों मौजूद हों। एक रंग से कोई तस्वीर पूरी नहीं बनती। 


रामायण और महाभारत दोनों इसलिए आज तक चर्चित हैं क्योंकि उनके पात्रों में खूबियाँ भी हैं तो खामियाँ भी. 


हम बस नायकों की खूबियाँ और खलनायकों की खामियाँ ही देखते हैं, याद रखते हैं।  यदि एक-एक पंक्ति ध्यान से पढें और नोट्स बनाएँ तो स्वयं इस बात की पुष्टि कर सकते हैं।  


महाभारत के कृष्ण के बारे में तो यह शायद सर्वज्ञात है कि वे दूध के धुले नहीं थे। वे चाहते तो युद्ध नहीं होता। असंख्य लोग न मारे जाते। कर्ण के वध में छल का सहारा लिया गया। सत्यवादी युधिष्ठर से झूठा-झूठ बुलवाया गया। 


लक्ष्मण जल्दी आपा खो देते हैं। परशुराम से मसखरी करने लगते हैं। भरत को शत्रु समझने लगते हैं जब वे राम को वापस बुलाने आते हैं। 


सीता सोने के हिरण के लोभ में आ जाती हैं। लक्ष्मण की नियत पर शक करती हैं। लक्ष्मण के दिए निर्देश का उल्लंघन करती हैं। 


राम शूर्पणखा को लक्ष्मण की तरफ़ भेज देते हैं यह कहकर कि मैं तो विवाहित हूँ जबकि लक्ष्मण भी विवाहित हैं। जटायु उन्हें बता देते हैं कि रावण ने सीता का अपहरण किया है फिर भी वे लंका की ओर कूच नहीं करते हैं। जब हनुमान अंगूठी दे आते हैं, चूड़ामणि ले आते हैं तब भी राम लंका की ओर कूच नहीं करते हैं क्योंकि चतुर्मास का समय है। सीता की अग्निपरीक्षा लेते हैं। सीता को राज्य हित में बिना किसी संरक्षण के जंगल में छोड़ देते हैं। पत्नी न सही प्रजा का हक़ तो दे ही सकते थे। 


नारद के मुख से विष्णु को बहुत अनाप-शनाप कहलाया गया है चूँकि उन्होंने नारद के चेहरे को कपि का चेहरा बना कर उनका विवाह नहीं होने दिया। उन्हीं के श्राप की वजह से राम अवतरित हुए और सीता के वियोग में रोए। 


टीवी सीरियल 'देवों के देव महादेव' में दक्ष और शिव के संवाद अमिताभ और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच हो रहे सलीम-जावेद लिखित संवाद जैसे हैं। 


हम हमेशा रामानन्द सागर को ही क्यों सन्दर्भ मान लेते हैं? दारा सिंह, निरूपा राय, भारत भूषण आदि द्वारा अभिनीत रामायण भी हैं। उनमें से एक 'सम्पूर्ण रामायण ' हमें नवीं कक्षा में केन्द्रीय विद्यालय द्वारा फ़ोर्ट विलियम के थिएटर में दिखाई गई थी, कलकत्ता में। 


रामानन्द सागर के पास पचास घंटे थे, कथा को विस्तार देने में। फ़िल्म में लगभग दो घंटे ही होते हैं।


साहित्य के क्षेत्र में अवधी भाषा तुलसी के समय में टपोरी भाषा ही रही होगी। 


राहुल उपाध्याय । 25 जून 2023 । रतलाम 


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