Monday, July 10, 2023

सत्यप्रेम की कथा

सत्यप्रेम की कथा - एक अच्छे मुद्दे पर बनी बहुत ही अच्छी फिल्म है। मुद्दा एक नहीं कई सारे हैं। पर सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। 


फ़िल्म की शुरुआत नाच-गाने-गीत-संगीत के शोर-शराबे से होती है जहाँ सब कुछ मसाला-पूर्ण होते हुए भी ताज़गी लिए हुए है। गरबा वाले नाच हिन्दी फ़िल्मों में इतने देखे जा चुके हैं कि इनमें नवीनता लाना असम्भव लगता है। इस फिल्म के निर्देशक समीर विद्वांस और कोरियोग्राफ़र को पूरा श्रेय जाता है कि उन्होंने समां बाँधे रखा। 


कार्तिक आर्यन का किरदार सत्यप्रेम, राज कपूर के जैसा सीधा-सादा इंसान है। सब जगह अपनी बात कह कर चलता बनता है बिना यह जाने कि उस बात का क्या असर हुआ है। जो मन में है वही सामने है। 


नारी में कितनी हिम्मत है अपना नुक़सान कर लेने की लेकिन उसके मुक़ाबले ज़रा सी भी हिम्मत नहीं कि अपने भले के लिए किसी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए। चाहे वो परिवार के सदस्य हो, पति हो या प्रेमी हो। सबको जस का तस रहने देती हैं। कोई बदलाव लाने का प्रयास नहीं करती हैं। इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है कहानी एक के बाद एक मुद्दे पर। 


यह फिल्म हर भारतीय महिला को, हर पुरुष को अवश्य देखनी चाहिए। 


बैकग्राउंड स्कोर का सहारा लेकर कई गम्भीर सीन आगे बढ़ाए गए हैं। सब का अभिनय बहुत ही उम्दा है। 


कार्तिक नये जमाने के नये शाह रूख खान है। वे नृत्य, हास्य एवं संजीदा सीन बखूबी कर लेते हैं। ऐसी फ़िल्में देख कर ही समझा जा सकता है कि क्यों अमोल पालेकर और नसीरुद्दीन शाह जैसे अच्छे अभिनेता सफल हीरो नहीं बन पाए। कार्तिक होना आसान नहीं। 


राहुल उपाध्याय । 11 जुलाई 2023 । बैंगलोर 

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