जन्म जिसका हुआ है, उसका मरण भी निश्चित है। सब जानते हैं। सब मानते हैं।
जब तक सूरज-चाँद रहेगा, जग में तेरा नाम रहेगा।
यह नारा भी यही दर्शाता है कि सूरज-चाँद सदा नहीं रहेंगे।
लेकिन कई लोग सोच नहीं पाते हैं कि सूरज भी एक दिन ख़त्म हो जाएगा। लेकिन यह सच है कि सूरज भी एक दिन चमकना बंद कर देगा।
सूरज एक तारा है। हमारे क़रीब है इसलिए ज़्यादा बड़ा और ज़्यादा प्रकाशवान दिखता है।
सारे तारे नश्वर हैं।
19 वर्ष की आयु में, सन् 1930 में, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने एक सीमा की गणना की थी, जिससे ज़्यादा अगर किसी तारे का वजन है तो वह मरते वक्त ब्लैक होल में तब्दील हो सकता है। इसे 'चन्द्रशेखर सीमा' कहते हैं।
इस बात को उस वक्त के स्थापित वैज्ञानिक एडिंग्टन ने बकवास ठहराया। ब्लैक होल जैसी कल्पना प्रकृति के प्रति उनको मज़ाक़ लगा।
लिहाज़ा इस सीमा का संज्ञान 53 वर्ष बाद चंद्रशेखर को नोबेल पुरस्कार देकर लिया गया।
तब वे 72 वर्ष के थे।
यह वाक़या दुखद भी है और सुखद भी।
दुखद इसलिए कि एक युवा वैज्ञानिक के शोध को युवावस्था में बकवास ठहराया गया। सारा जीवन इस उपलब्धि से वह वंचित रहा।
सुखद इसलिए कि वह नवयुवक हताश नहीं हुआ। वह शोध करता रहा। किताबें लिखता रहा।
सुखद इसलिए भी कि उसके समर्थक उसे भूले नहीं और देर-सवेर उसे नोबेल पुरस्कार दिलवा कर ही रहें।
नोबेल पुरस्कार मिलना इतना आसान नहीं है। हर वर्ष कई उम्मीदवार होते हैं। उनमें से एक चुनना बहुत कठिन होता है।
आज, 19 अक्टूबर, के दिन चन्द्रशेखर का जन्म हुआ था।
इस सीमा की अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें:
राहुल उपाध्याय । 19 अक्टूबर 2021 । सिएटल
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