आज़ादी? क्या होती है आज़ादी?
15 सितम्बर 1986 को जब मैं अमेरिका पहुँचा, मुझे पूरी आज़ादी थी कि मैं जब चाहूँ अमेरिका छोड़ सकता था। लेकिन प्लेन टिकट ख़रीदने के लिए पर्याप्त धनराशि न होने की वजह से नहीं छोड़ा। यह थी आर्थिक ग़ुलामी।
बाद में धनराशि जोड़ लेने पर भी नहीं आया। क्यों? क्योंकि वापस अमेरिका के लिए वीज़ा मिल पाना निश्चित नहीं था। निश्चित करने में पाँच साल लगे।
आज के मिलन के सुख के लिए मैं अपने सुखद भविष्य की बलि नहीं देना चाहता था।
पाँच साल तक मैं एक जेल में रहा। ख़ुद की बनाई हुई। उस जेल में कोई सलाख़ें नहीं थी। मैं उससे जब चाहे तब छाती चौड़ी कर निकल सकता था। कोई रोक-टोक नहीं। कोई पूछताछ नहीं। कोई जाँच-पड़ताल नहीं।
लेकिन वापस आते वक्त हज़ार दिक़्क़तें आ सकती थीं।
हम रोज़ ऐसे निर्णय लेते हैं। रोज़ किसी न किसी जेल का निर्माण करते हैं और उसमें रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
गाँधी जी आज़ाद थे। कुछ कटु अनुभव हुए। वे दूसरों की बनाई हुई जेल में क़ैद हुए ताकि वे और अन्य आज़ाद हो सके, विदेशी ताक़त के बनाए नियम-क़ानून से।
और हम हैं कि अपने ही घर, परिवार, समाज के बनाए हुए नियम-क़ानून में हर दिन, हर पल बँधे रहते हैं।
क्या पहनें? हम आज़ाद नहीं हैं।
क्या खाएँ? हम आज़ाद नहीं हैं।
क्या करें? हम आज़ाद नहीं हैं।
किससे मिलें? हम आज़ाद नहीं हैं।
किसे फ़ोन करें? हम आज़ाद नहीं हैं।
राहुल उपाध्याय । 2 अक्टूबर 2021 । रतलाम-उज्जैन के बीच
No comments:
Post a Comment