Monday, August 16, 2021

अच्छा खंडित सत्य

https://youtu.be/bKnbu1n17YE


इस साक्षात्कार में भाषा, कविता, कवि, पाठक, श्रोता, प्रकाशक, पुरस्कार के समीकरण पर हुई चर्चा रोचक है। 


प्रस्तुत है अज्ञेय की पूरी कविता जिसका उल्लेख इस साक्षात्कार में है।

——


अच्छा खंडित सत्य

— अज्ञेय


अच्छा 

खंडित सत्य 

सुघर नीरन्ध्र मृषा से, 

अच्छा 

पीड़ित प्यार सहिष्णु 

अकम्पित निर्ममता से। 


अच्छी कुण्ठा रहित इकाई 

साँचे-ढले समाज से, 

अच्छा 

अपना ठाठ फ़क़ीरी 

मँगनी के सुख-साज से। 


अच्छा 

सार्थक मौन 

व्यर्थ के श्रवण-मधुर भी छन्द से। 

अच्छा 

निर्धन दानी का उघडा उर्वर दुख 

धनी सूम के बंझर धुआँ-घुटे आनन्द से। 


अच्छे 

अनुभव की भट्टी में तपे हुए कण-दो कण 

अन्तर्दृष्टि के, 

झूठे नुस्खे वाद, रूढि़, उपलब्धि परायी के प्रकाश से 

रूप-शिव, रूप सत्य की सृष्टि के।


——

सुघर = सुंदर

नीरन्घ्र = छेद रहित

मृषा = झूठ 

मँगनी = माँगे हुए

उर्वर = उपजाऊ 

सूम = कंजूस


——

राहुल उपाध्याय । 16 अगस्त 2021 । सिएटल 



No comments: