15 सितम्बर 1986 मेरे जीवन की इतनी बड़ी तारीख़ है कि इसके बारे में मैं कहते-लिखते नहीं थकता।
यही वो दिन है जब मैं अनमने मन से अमेरिका आया था और अमेरिका आने के 12 घण्टे के अंदर ही यह निर्णय कर लिया था कि अब मैं अमेरिका में ही रहूँगा। अपनी मर्ज़ी से यह देश नहीं छोड़ूँगा। किसी मजबूरी में शायद छोड़ना पड़ जाए, पर अपने आप नहीं।
आर्थिक कारणों की वजह से तुरंत तो कोई नहीं लौटता है, लेकिन हाँ सबके मन में यह भाव तो रहता ही है कि एक न एक दिन भारत वापस लौट जाएँगे।
मैंने कभी नहीं सोचा।
15 की शाम जब जे-एफ-के एयरपोर्ट उतरा तो मेरी अज्ञानतावश मेरी अटेचियाँ कस्टम्स में रह गई। टी-डबल्यू-ए एयरलाइंस के प्रतिनिधि ने भरोसा दिलाया कि चिन्ता न करें हम सामान सुरक्षित सिनसिनाटी में आपके घर पहुँचा देंगे। और सामान दूसरे दिन तड़के सुबह सही-सलामत घर पहुँच गया। जबकि मेरा कोई घर न था। अपर्णा जो मुझे एयरपोर्ट लेने आए थी, उसके घर। अपर्णा, जिसे मैं जानता तक ना था, नाम भी नहीं सुना था। वह एयरपोर्ट लेने आई क्योंकि राज ने कहा था। राज को भी मैं नहीं जानता था। राज, सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के भारतीय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। (उन्हें मेरे आने की खबर अंतरराष्ट्रीय छात्र संध ने दी थी।) राज को शहर से बाहर जाना था सो अपर्णा को मेरा काम सौंप दिया। साथ ही अपने घर की चाबी दे गए ताकि मैं पहली रात एक अनजान देश में आराम से गुज़ार सकूँ।
टी-डबल्यू-ए के प्रतिनिधि और राज के व्यवहार ने मेरा दिल जीत लिया और मैं सदा के लिए अमेरिका का हो गया।
हर साल मैं उस दिन के घटनाक्रम पर विचार करता हूँ। 2019 में 33वीं वर्षगाँठ मनाई। सब कह रहे थे, ये कैसा पागलपन है? 33वीं कौन मनाता है? 25, 50 तो समझ भी आती है।
अच्छा किया, मना ली। मम्मी साथ में थी। उनके साथ मन गई। 2020 में कोविड की वजह से कुछ हो नहीं पाया।
इस साल मम्मी नहीं है। उनका न होने का दुख तो बहुत है फिर भी कुछ लोगों के साथ बैठ कर कल 15 सितम्बर 86 को याद किया।
राज भी सिएटल में ही रहते हैं। माइक्रोसॉफ़्ट में कार्यरत हैं। 33वीं पर भी आए थे, कल भी आए। मम्मी के दाह संस्कार में भी आए थे।
सचमुच बहुत अच्छा लगता है यह जानकर कि हम दोनों आज भी सम्पर्क में हैं।
राहुल उपाध्याय । 16 सितम्बर 2021 । सिएटल
1 comment:
बधाईयाँ. किसी 15 सितम्बर को हम भी आपको रूबरू बधाई देंगे. आपकी बात - अमेरिका आने के 12 घण्टे के अंदर ही यह निर्णय कर लिया था कि अब मैं अमेरिका में ही रहूँगा - वाकई गज़ब है. ऐसा निर्णय विरले ही ले पाते हैं.
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