हम गर्व से कहते हैं कि हमारी संस्कृति में मातृ दिवस, पितृ दिवस का कोई स्थान नहीं है। क्योंकि हर दिन हम उनका सम्मान करते हैं, आदर करते हैं, ख़याल रखते हैं, देखभाल करते हैं।
फिर ये शिक्षक दिवस क्यों? ये गुरू पूर्णिमा किस लिए?
शिक्षक एक पेशा है। रोज़गार है। कैरियर है। वेतन मिलता है। मुफ्त में कोई कुछ नहीं पढ़ाता।
पढ़ाता भी है तो सबको एक साथ। कोई सीख पाता है। कोई नहीं।
इसमें छात्र की भूमिका ज़्यादा है या शिक्षक की?
गुरू? गुरू तो कोई होता ही नहीं है। यूँ ही हमने भ्रम पाल रखे हैं।
गाना सिखाने वाले भी गुरू नहीं। पैसे लेकर सिखाते हैं। रोज़गार है। पेशा है। इसी तरह से तबला सिखाने वाले, गिटार सिखाने वाले, सब के सब धन कमा रहे हैं। और कुछ लोग सीख जाते हैं। कुछ नहीं।
क्रिकेट के कोच, ऑफिस के सलाहकार सब इन्हीं श्रेणियों में फ़िट हो जाते हैं। गुरू कोई नहीं।
कोई कहता है मेरी माँ मेरी गुरू है। मेरे पिता मेरे गुरू हैं।
ये सब भी रिश्तेदार हैं जो अपने बच्चों का भला चाहते हैं और समय-समय पर राय देते हैं। गुरू नहीं।
राहुल उपाध्याय । 5 सितम्बर 2024 । गोरखपुर
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