स्त्री 2 बिलकुल बेकार, बकवास, बच्चों के लायक़ फ़िल्म है जिसे बच्चे भी नहीं देख पाएँगे। और समझ तो कोई नहीं पाएगा।
आजकल लोगों को सच कहने में शर्म आने लगी है। ख़ासकर तब जब कुछ पापुलर हो जाए तो उसके ख़िलाफ़ कुछ कहना तो ग़ैर-ज़िम्मेदार लगने लगता है। यह फिल्म इतने पैसे कमा रही है तो ज़रूर कुछ तो अच्छा ही होगा। कैसे कह सकते हैं कि बे-सर-पैर की है।
सरकटा पात्र तो है ही पटकथा भी सरकटी है।
फ़िल्म का ख़ास आकर्षण 'आई नहीं' गीत है। गीत क्या नृत्य है। लेकिन यह गीत फ़िल्म में है ही नहीं। फ़िल्म के अंत होने पर क्रेडिट रोल के साथ ज़बरदस्ती घुसेड़ दिया गया है। और जैसे कि यह कम पड़ रहा था तो एक और गीत भी जोड़ दिया गया है। जनता तब तक थियेटर से बाहर हो चुकी थी।
'आई नहीं' गीत की धुन 'भूल भूलैया' के गीत 'हरे राम हरे कृष्ण' से चुराई गई है। कोरियोग्राफ़ी 'पुष्पा' के गीत 'सामी' से चुराई गई है। तमन्ना का काम सिर्फ़ एक आयटम सांग के लिए है। वह गीत भी 'पठान' के गीत 'बेशर्म' से चुराया गया है।
जैसे कि अंदेशा हो कि कहानी अपने दम पर नहीं चल पाएगी तो दो मेहमान कलाकार भी हैं। अक्षय कुमार और वरूण धवन। जिनकी कोई तुक नहीं है।
वन लाइनर जोक्स रील्स में ज़्यादा प्रभावी हैं। फिल्म में नहीं। अटल जी, दिशा पटानी और नेहा कक्कड़ का सन्दर्भ अच्छा लगा। अर्द्धनारीश्वर का सीजीआई भी पसन्द आया। गुफा में लावा आदि लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स जैसी फ़िल्मों से प्रभावित लगे।
मैं मुम्बई फ़िल्म के स्क्रिप्ट राईटर्स आदि से मिल चुका हूँ। तो दुख होता है यह देखकर कि वे विदेशी फ़िल्मों की नक़ल करने में अपनी भलाई समझते हैं। और दर्शक भी ख़ुश होते हैं कि हम भी उनके जैसी फ़िल्म बना सकते हैं।
राहुल उपाध्याय । 4 सितम्बर 2024 । गोरखपुर
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