आईसी 814 अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित एक वेब सीरीज़ है। जो इन दिनों काफ़ी चर्चा में हैं एवं सराही जा रही है। यह भी एक भेड़ चाल का उदाहरण है।
जन समाज की सराहना तो भेड़ चाल से प्रभावित है ही, इस सीरीज़ का निर्माण भी भेड़ चाल से प्रेरित है। हम नया विषय कोई सोच ही नहीं पाते हैं। वही घिसीपिटी ड्रामा-त्रासदी-सच्ची घटना के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। ऐसी कई सीरीज़ बनती रही हैं और बनती रहेंगी।
ज़बरदस्ती में मामला इतने एपिसोड में खींचा गया है। टीवी चैनल है, अख़बार है, विशेष आवश्यकता वाला बच्चा है, पति-पत्नी का मनमुटावा है, साँस लेने में तकलीफ़ है, फ़र्ज़ निभानेवाली परिचारिकाएँ हैं, मोटे अफ़सर हैं, रात के अंधेरे में हो रहे खुफिया ऑपरेशन हैं, राजनीतिक मतभेद हैं। सारे मसाले हैं। खिचड़ी तो अच्छी ही बनेगी। उस पर से निर्माण की गुणवत्ता और कलाकारों की अदायगी उम्दा है। तो वाह तो निकलेगी ही।
लेकिन यदि थोड़ा दूर होकर गंभीरता से सोचें तो क्या है इस वेब सीरीज़ में? कुछ भी नया नहीं। कोई नया विचार नहीं। कोई जागरूकता नहीं।
अनुभव सिन्हा की भीड़ फ़िल्म भीड़ से अलग थी। छोटी फ़िल्म। गहरी बात।
आईसी 814 से निराशा ही हाथ लगी।
सारे उम्दा कलाकारों की उम्दा अदायगी व्यर्थ गई। उनके पात्र रोबोट जैसे लग रहे थे। एक ही इमोशन पूरी सीरीज़ में। जैसे उन्हें चिंतित रहने के अलावा और कोई निर्देश नहीं दिया गया।
राहुल उपाध्याय । 3 सितम्बर 2024 । गोरखपुर
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